शिवा जी | Shivaa Ji
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शिवाजी षदे
बाई को इससे सस्तोप न हुमा । विवाह-संम्वन्ध के बिना इस प्रकार
के संस्कार क्षणिक प्रभाव पैदा करते हैं । जीजावाई ने झ्पनी पोती,
शिवाजी की पुत्री व शम्भाजी की वहिन सुश्ुवाई का विवाह बाजाजी
निम्बालकर के पुत्र भहाराजी के साथ सन् १६५७ में कर दिया !
श्राज प्रार्यजाति की देवियां ब्रपनी संकोणंता तथा रूडिप्रियता के
कारण श्र्जाति में सम्मिलित होनेवाले लालों प्रायेसन्तानों को
कुलाभिमान तथा जन्माभिमान के कारण तिरस्कृत कर रही है।
जीजाबाई ने इस कार्य द्वारा महाराष्ट्र की जनता के सामने यथार्थ में
अपने-आपको राजमाता के रूप में उपस्थित किया । शिवाजी के
बालसखा, छोटे-वड़े जन्ममूलक ऊंच-नीच भ्रादि के भेदभाव को
छोड़कर, जीजाबाई को राजमाता एवं राष्ट्रमाता के रूप में पूजने
लगे]
शिवाजी के राज्याभिषेक की तैयारियां हो रही है। विविध
देशों के राजदूत शिवाजी से भेंट करना चाहते हैं । परन्तु शिवाजी
राज्याभिषेक-समारोह में सम्मिलित होने से पूर्व स्वाभी गुरु रामदास
श्रौर जीजावाई की सेवा में उपस्थित होकर श्राशीर्वाद प्राप्त कर रहे
हैं भ्राज का दृदय स्वयिम है। जागीरदार की कन्या जीजाबाई को
सारा जीवन, युदावस्था की उमंग-भरी रातें, मुसीवतों में बिताती
पड़ी थीं परन्तु भ्राज उसकी दुखं कौ वे रातं समाप्त होती ह । पिता
और पति दोनों से उपेक्षितं जौजावाई के चरणों मे प्राज महाराष्टरके
छवपति सिर भुका रहे हैं। जिस कामना की साधना में सारा जीवन
व्यतीत किया, भ्राज वह सफल हुई । शाहजी कौ उपेक्षिता धर्मपत्नी
श्रस्सी सालं की श्रायु मे, राज पत्ति च पिता कौ उदासीनता को भरूल-
कर, वीरपुत्र की भक्ति श्रौर श्रद्धामयी सेवा से पुलकित हो भ्रपने-
आ्रापमें समा नहीं रहो । भ्रानन्दाश्रु उसकी चिन्ता विपत्तियों से
जजेर शरीर को पुलकित भौर स्फूतिमय बना रहे हैं । अाज उसके
भ्रानन्द का पारावार नहीं । श्रपने पुत्र को झपनी जन्मभूमि में मुकुट
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