निमित्त | Nimitt
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1002 KB
कुल पष्ठ :
38
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निंभित्त [१३
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चेया उ पयडीयददं उप्पलइ विशस्त
पयडीवि चेययट्रः ` उप्यजइ विणस्सइ ॥
-पवं वंधो-उ दुराहंपि. अणणोर्णप्पचचया हदे 1 -
अप्पणो पयड़ीय च संसारो तेण जाय ॥
अर्थ--ज्ञान स्वरूपी आत्मा ज्ञानावरणादि कर्म की
प्रकृतियों के निमित्त से उत्पन्न 'होता है तथा विनाश भी
होता हैं और कर्म प्रकृति भी आत्मा के भाव ' का निमित्त
पाकर उत्पन्न दोती है, विनाश को प्राप्त होती है । इसी
प्रकार आत्मा तथा प्रकृति का दोनों का परस्पर निमिच.
से बन्ध होता है तथा उम बन्ध सै संसार उत्पन्न होता है।
इससे सिद्ध होता है कि कम के साथ में आत्मा का.
निमिच-नैमित्तिक सम्बन्ध है जो आात्माके भाव के साथ
में कार्माश वर्गणा का निमित्त नेमिचिक सम्बन्ध है ।
पंचास्तिकाय ग्रन्थ की गाथा १३३ की टीका में लिखा
# ७
हैकि--
“जीवस्य कतु ; निश्चयकर्म॑तापन्नशुभ
परिणामो दभ्यपुण्यस्य निमित्त मात्रसेन कारणी
भूततात्तदाश्रवच्चणादृध्वं मवति भावपुणयम् । ˆ
अथे-“जीव कर्ता है, म परिणाम कर्म है, बरही
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