चरित्रगठन और मनोबल | Charitragathan Or Manobal

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Charitragathan Or Manobal by दयाचन्द्रजी गोयलीय - Dayachandraji Goyaliy

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about दयाचन्द्रजी गोयलीय - Dayachandraji Goyaliy

Add Infomation AboutDayachandraji Goyaliy

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
चरिय्रनाठन शऔर सनोयठ। ७ धनवान्‌ हो चाहे निधन, इससे कुछ मतठ्य नहीं । चाहे वह उच जातिका दो, चाहे नीच जातिका, इससे भी कुछ गरज नदीं । द इतना जरूर है कि घह एफ नेक सदाचारी उइका है | एक दिन बट अपने मित्रोंके साथ सन्प्याके समय सैर कर रहा है। उसके मित्र भी वैते ही साधारण धिित्िके सम्य सदाचारो लड़के हैं, परन्तु प्रायः साधा- रण ठड़कोंके समान दे भी कभी कभी भूठ कर बैठते हैं । ऐस! ही उस दिन भी हया | उन्मेत्ते एकमे कह दिया कि चढो, साज किसी जगह चटकर साथ साथ खि! इसमे कख भी कठिनाई नदीं इई; सब हसते खेरते उस स्थान पर पहुँच गये | वहाँ उनमेंसे एक लड़का योढा कि “भाई, कुछ पीनेको भी चाहिए। उसके बिना कुछ भानन्द न आयगा 1”? अब हमारा नवयुवक उस समय इकार करना सम्य ताके प्रतिवूढ सौर मित्रताके नियमोंके विरुद्ध समझकर हॉँमें हाँ मिटा देता है ) विवेक अदरसे रोकता है और पुकार कर कहता है कि सावधान हो, देख, क्या करता है | परन्तु वह इस समय बु नहीं सुमता ! उसको इस वातका विचार नहीं हैं कि चरित्रकी इृटता सदा सच्चे मार्ग पर जमे रहनेमें है | बह भित्रोके साथ उस दिन घोटी दरात्र पी छेता है । यद्यपि बह इस विचारसे नहीं पौता कि उसको दरावसे प्रेम दै या बदद दारावकी आदत डाटना चाहता है, सिर यह याट करके पी लेता है कि मिनो ईकार वरना ठीक नहीं है। दैवयोगसे दो चार वार ऐसा ही मौका पड़ जाता है और वह हर वार थोड़ी थोड़ी पी छेता है। परन्तु इसका परिणाम बहुत ही बुरा होता है | प्रत्येक बार विवेकर्की रोकटोक कम होती जाती है भौर थीरे धरे उसे मरेकी पाट पडती जाती दै | खवर तो चह कभी कभी स्व्यं मी खरीद कर थोड़ीसी पी छेता है । उसकी स्वम मी दस




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now