सुख और सफलता के मूल सिद्धान्त | Sukh Aur Safalata Ke Mool Siddhant

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Sukh Aur Safalata Ke Mool Siddhant by दयाचन्द्रजी गोयलीय - Dayachandraji Goyaliy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२-सुकाये । (> € मनुष्य सदषेभ्य चना कर नियमानुसार काम $ ~ 4 करता ७, उसे शीघ्र इस धात का पता लग जाएगा £ जा कि सुकायों की ओर से मखुप्य को ्रसावधान गद नहीं दोना चारिये। उसे निरतर शस यात का ध्यान रखना चाहिये कि कोनसा काम 'च्छा है सौर कौन सा घुर । जितना उसको इस মার ক্ষা লাল হীলা আ पगा उतना ही उसका जीव्रन- मार्ग सरल मौर निष्केटक होता जाएगा उसका समय शांति से व्यतीत होगा। ऐसा मनुष्य तमाम षार्नमिं सीधे मार्मका श्रदुगामो दोना दै । यह्‌ निभय होकर श्रधना काम करता रहता है, वाहा शक्तियों का उस पर कोः प्रसर नहीं होता जिस मार्ग का वह अवलम्बन कर लेता ड, चस -उ तीः पर प्रष्टु रहना रै । इससे यह न समना चादिये कि वह प्पने सम्बन्धियों और निकट्वतियों के सुख दुख की कोई खिता नहीं करता । यह दूसरी धात है। हों, यह श्वभ्य हैं कि यह उनके विचारो, उनकी श्रष्ठानना मीर इच्छाओं की परया नहीं कररता 1 सखुकायों से वास्तव में यह तात्पय है कि दूसरे के साथ सद्व्यवहार क्रिया जाए सदब्यवहार करने वाला मजुन्य जानता दे कि सुकाये केवल दूसरों के लाभ के लिये हैं ओर घह बरावर उर््हें किये जाता है, चाहे ये लोग उसके साथ उल्टा व्यवहार क्यों न कर। वह अनेक कष्ठीं और याधार के आमे पर भी अपने मार्ग से ज्युत नहीं होता। चाहे संसार १९




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