विश्वामित्र और दो भाव-नाटक | Vishavamitra Aur Do Bhav-Natak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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मेनका--
चिश्थासित्र
क्यों श्रम यह फलद्दीन कर रही है सखी !
तेरे बश का नहीं समाधि-त्याग तक !
मुझे नहीं इससे है कोई हेष सखि,
और असंख्यों तापस करते तप यहाँ
किन्तु मेनका केवल इस ऋषि को यहीं
वश कर दिखला देंगी, नारी कौन है !
नारी श्राण-विद्दीन चेतना से रहित
एक भावना-पुज, पराई आस है।
जो साधन है जग सें मानव सौख्य की
सुखदीना है स्वयं, अपर का सुख सदा |
चह विलास-स्वच्छन्द पुरुष के प्राण की
मदिरा, जिसको स्वयं नशा होता नदीं ।
ओसोकेदी लिए हदय है, बुद्धि दै
मन है, प्राण, शरीर, कर्म है, धर्म हे।
ह समग्र यह् शिथिल विश्व का रूप यह
और विधाता के प्रमाद का फल यही |
हों; नहीं, यह कैसे कहती हो सखी,
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