महादेव भाई की डायरी भाग - 3 | Mahadev Bhai Ki Dayari Bhag - 3

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Mahadev Bhai Ki Dayari Bhag - 3 by रामनारायण चौधरी - Ramnarayan Chaudhry

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ वापू : कानून-धास्वर्मे भी -आत्महत्याका हक माना गया है । जाप मते पूछेंगे कि रामतीयं, रामकृष्ण या चिवरेकानन्द किसने असी तपस्याकीरहं? रामतीर्थने जान-बूझसकर आत्महत्या की या समाधिमें असा किया, पर असका कोगी सत्तीजा निकला हैं? आप तो यह भी पछेंगे कि बसा सली पर चढ़े गुसका कोगी असर हुआ है ? राजाजी : पर हिंन्दूचर्म आत्महत्या स्वीकार नहीं करता । ~ बापू: मुझे माठूम नहीं । लेकिन महादेव मुझे कहते थे कि गंगामें डूव मरनेका रिवाज है। राजाजीः वह तो गंगाजलसे पतित्न होनेके लिगे है। में जितना स्वीकार करता हूं कि जिस सारे पापका कारण यदि आप हों तो भले ही आत्महत्या करें! ताकिक दुष्टिमि आपकी जीत होगी, पर जसी जीत तो आपको नहीं चाहिये न? वापू: मुझे तो प्रायदिचत्त करना ह । नैतिक बुहेद्य पूरा करनेके लिखे साधन भी नैतिक होने चाहिये । काडिनल मेनिगको तीन त्िक्कुट और पानी पर रखा गया धा। काडिनख मेनिग जिस धीमी मौतसे मरे कहे जाते हैं, ससे लिक्कीस दिनके अपवासत करना बहुत मासान ह! नैतिक सुवार तपङ्चर्या गौर आत्मगुद्धि जसे नैतिक सावनोतेदी हो सकता हं । चिसमे जिन वंज्ञानिकोने यिस चीजका अन्‌भव किया है, अुनके अदाहरण लेने पड्गे। में और मेरी मां अं से कुटूंवमें जन्मे हुअ हें, जिसमें असे ब्रत ठेना रोजमर्राकी चीज थी। अूनका यह अनुभव है । मेरी मांके मंसे कड़े ब्रत शायद मेरे पिताको . अच्छे न लगते हौ, पर अुस पर मिनका कोओ बुरा असर नहीं हुवा था। यत्कि जिस कारणसे सके प्रति हमारा आदर बढ़ता ही था । राजाजी : यहू अुदाहरण केवल विचार-साहचर्यका हूं। मां अंसे त करती थी, जिसलिअे आप थी करें, क्या जिसका सचमुस कोनी बचाव हो सकता है? कोओऔी आदमी गरीरमें सृजा मोक, तो जिसमे नोय कसे समझेंगे कि मनुष्यकों अछूत समझना पाप है? बापू: तब थोड़े दिनके अपवास करूँ तो ? या जिन अपवासके अंतमें न मखूं तो? राजाजी: जिन दोनोंके वीच कोओी संबंध ही महीं। आप तो यह मा गेखते हैं कि देहू-दमन आर प्रतीतियोके वीच यूढ़ सम्बन्ध है। रे ह-दमनके विरुद्ध बुद्धने पहली आवाज जुठामी मीः न २ ~+ कदन




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