चयनिका | Chayanika 

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दिया । इस आलोक त्रिभुज-आदिनाथ, भरत, बाहुवली मे न केवल इस देश अपितु पूरे विश्वधर्म की व्याख्या सभव है उसे समझा जा सकता है। (मानव-सस्कृति के आदि-पुरस्कर्ता भगवान्‌ ऋषभनाथ) ^ री भावना : लोक भावना समय ओर सामायिक मे “सम और “अयू' दोनो है । पहले स्थिति फिर गति । सामायिक स्थिति/गति दोनो है । पहले हम स्वय मे सुस्थित/अडिग होते है और फिर अपरपार वेग मे आत्मोन्पुख हो निकलते हैं । हमारे पप-का-वेग, उसकी रफ्तार बढ जाती है वस्तु-स्वरूप की खोज-यात्रा मे । सहनशीलता प्रकट होने लगती है रोम-रोम मे । इष्ट- अनिष्ट की खाइयाँ पार कर हमारा चित्त समत्व मे गहरे उतरने लगता है । मृत्यु और जीवन के अर्थ बदल जाते है हमारी मनीषा मे । मृत्यु मृत्यु नही होती, जीवन होती है । हम उसके जरें- जॉं को जानने लगते हैं और खोज़ते लगते है उस सातत्य को जो जीवन का सातत्य है और जहाँ मृत्यु की स्पष्ट मृत्यु है । रागद्वेष का तो वहाँ सवाल ही नही है । मेरी भावना के सिर्फ ग्यारह छन्दो की निएपद गक्ियो से गुजर कर हम एसे परम तपोवन मे होते है । भैनत्व : रचनात्मक दिशा जिसका मन उजला है, तन उजला है, वचन उजला है, उसे कुछ और करने की जरूरत ही कहाँ रहती है ? जिसकी कथनी-करनी मे एकता है, उसे भला और क्या चाहिये ? जिन-वाणी ऐसे ही सपूतो को जन्म देना चाहती है । हमारे जैनत्व को एक नयी रचनात्मक दिशा और रोशनी प्रदान कर सकती है । (मेरी भावना) 2 'मक्तामर' का श्लोक : गहरा कुआ कुआ जितना ऊंडा होता है, जल उतना ही मधुर, निर्मल और विश्वसनीय होता है । जछ दी निर्मलता, मिठास और शीतलता कुए की गहराई पर निर्भर कर्ती है 1 स्तोत्रादि के सवन्प में भी ऐसा ही है। इनमे आप जितने गहरे जाएँगे, स्वातुभूति की मिठास और वैमल्य उत्ते ही अधिक आपकी अजलि मे सिमिट जाएँगे । “भक्तामर' का हर श्लोक एक गहरा कुआ है। इममे आप जितने गहरे अपना चित्त-पात्र दर्शन वी डोग्से वाँधकर डालेंगे उतना तै निर्मल / मीठा जल आपको मिलेगा । मानतुग ने जिस निर्मलता में श्लोक-सृष्टि की है यदि उस/ उतनी, गहरी /निष्कलुप पतित-पावनी /निष्काम भूमिव्न पर बैठ कर हम रसाम्वाद लगे तो जनायाम ही जीवन के ऐसे कसी हुग शिखर पर जा पटैचेगे रं प्रका के सलवा ङ्ख होगा हो न्ट । सही पहुँच, सही गन्तव्य' के सूद्र पर हमे, वम्तुत , चलना त ता हम अपनी सर्पा यात्रा निर्वाध संपन्न वर सझे २१ ताज हम अपना मपू यात्रा अन्न पत्र क्र सऊ) चपनिखा € १५




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