गांधी जी की देन | Gandhi Ji Ki Den

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Gandhi Ji Ki Den by राजेंद्र प्रसाद - Rajendra Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जांयगा। वह २४ घंटे के भीतर पहली गाड़ी से बाहर चले जायं । ऐसा तो अबतक किसीके बारे में नहीं हुआ था । किसीके किसी जिले में आने-जाने _ पर रोक नहीं लगाई गई थी । गांधीजी ने सरकार के इस हुक्म को मानने से इन्कार कर दिया । उन- . पर मुकदमा चला । चारों ओर तहलका मच गया । जब मजिस्टेंट के सामने गांधीजी लाये गए तो सरकारी वकील नें समझा कि वह बैरिस्टर हैं। कानूनी किताबों का बोझ गाड़ी पर छदवाकर लायेंगे । खूब बहस होगी । इसलिए काफी तैयारी थी किन्तु गांधीजी को तो कुछ और ही करना था । जिस समंय गांधीजी लायें गए अदालत में सैंकड़ों आदमी जमा हो रहे थे । मजिस्ट्रेट ने सारी खिड़कियां बन्द कर मुकदमा शुरू किया । इधर लोग इतने बेताब हो रहे थे कि उन्होंने खिड़कियों के दीशे आदि फोड़ डाले । गांधीजी ने उन्हें बाहर आकर समझा दिया । वे शान्त हुए । फिर महात्माज़ी ने एक बयान दिया । उस बयान में उन्होंने कहा-- मैं यहां दुःखी और पीड़ित भाइयों की तकलीफों का पता लगाने आया हूं । .. इसमें सेरा मतलब उनकी शिकायतों की जांच करके उनकी सेवा करना . और दुःख दूर करना ही हैं। सरकार अपने हुक्म से मुझे यहां से निकालकर यह काम करने से रोकना चाहती है किन्तु में उनकी तकलीफ दूर करना चाहता हं। इसलिए सरकारी हुक्म तोड़ने का दोष मैं अपने माथे न. लेकर सरकार ही के माथे देता हैं क्योंकि मैं ऐसा करने के लिए लाचार . किया जाता हूं 1१ सजिस्ट्रेंट ने पूछा कि तब तो आप अपना कसूर मानते हूँ? महात्माजी ने कहा कि अगर तुम इसीको कसूर कहते हो तो मैं अपना कसूर मान लेता हूं । मजिस्ट्रेट पर सौ घड़ा पानी पड़ गया । अब वह क्या करे ? उसने तो सोचा था कि जिरह-बहस आदि में कुछ दिन... लगेंगे तबतक मैं कलक्टर आदि से मिलकर कुछ तय कर लंगा कि इस. मुकदमे में क्या किया जाय किन्तु गांधीजी ने तो उसकी जड़ ही काट . . दी। कसूर मान लेने पर तो सिर्फ सजा सुनानी रह जांती है। वहं सजा ...... यह पूरा बयान लेखक की चम्पारन का सत्याग्रह पुस्तक में है ।




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