अधिकार महासमर भाग 2 | Adhikar Mahasamer Vol-2

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Adhikar Mahasamer  Vol-2 by नरेन्द्र कोहली - Narendra kohli

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जाए । समय से भोजन के लिए आ जाना ! ”” अच्छा माँ 1” संध्या समय विदुर आया । कूंती जानती थी कि आवद्यकता होने पर हस्तिनापुर में वह दो ही व्यक्तियों से अपने मन की कोई वात कह सकती थी: एक पितृव्य भीष्म और दूसरा देवर बिदुर । पितृत्य वडे थे : संबंध्र में इवसुर भौर वय की दुष्टि से प्रायः पित्तामह ! उनके पास दैनंदिन की साधारण वातें लेकर नहीं जाया जा सकता था । किंतु, विदुर देवर था ! वय और विचारों--दोनों से ही अनुकूल । उससे भी चर्चा नहीं करेगी, तो कदाचित्‌ कुंती का मस्तक फट जाएगा जीवन में ऐसा वहुत कुछ है, जो कुंती चुपचाप पी जाती है; बहुत कुछ जो गोपनीय है, वह छिपाए भी रख सकती है; किंतु अपमान का यह घूंट, कुंती के लिए हलाहल हो रहा था । इसे निगलने से अच्छा था कि वह उगल ही दे । कहीं ऐसा न हो कि इसे पचाने क प्रयत्न में वह नीलकंठ ही हो जाए'** विदुर ने सारी घटना सुनी और कुछ सोचता रह गया । कुंती उसकी ओर देखती रही : वया सोच रहा है विदुर ? “भाभी ! ” अंततः वह वोला, “राजा धृतराष्ट्र या गांधारी में उसे आपका अपमान करने के लिए भेजा हो, अथवा उसे उकसाया हो--ऐसा तो मैं नहीं समभता । उन्हें इस घटना की सूचना हो ही, यह भी आवइयकः नहीं: है । कितु '*'”” किंतु क्या विदुर ? ” “मुझे ऐसा लगता है कि वे लोग भपने व्यवहार अथवा वार्तालाप से ऐसा अाभास भव्य देते होंगे कि उनके मन में आपके लिए कोई सम्मान नहीं है । आप लोग उन पर बलात्‌ भारोपित हैं । ' तभी तो वह दासी ऐसा दुस्साहस कर 'पाई।' “और मेरा तो यह भी अनुमान है कि यदि इसकी सूचना उन्हें हो भी जाए, तो वे लोग उस दासी को कोई दंड भी नहीं देंगे ।” “कारण ?” “वे नहीं चाहते कि हस्तिनापुर में आपका निवास सुविधापुर्ण भर सम्मान- जनक हो ।”' “पर क्यों ? ” कुछ देर तक विदुर जैसे किसी असमंजस में कृत्ती की ओर देखता रहा; और 'फिर बोला, “क्या आप सचमुच नहीं समकतीं ?” ' “कुछ समझती तो हू ! ” कुंत्ी वोली, “किंतु चाहती हूँ कि कोई और भी उसकी पुष्टि करे कि मेरा अनुमान सत्य है अथवा नहीं 1” .22 / महासमर-2




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