निर्बन्ध महासमर - 8 | Nirbandh mhasamer Vol-8
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.7 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जाएँ ? उनकी नैसर्गिक मृत्यु हो जाए उनको कोई हिंप्र पशु खा जाए अथवा हस्तिनापुर से जाकर कोई उनकी हत्या कर आए ? क्या यहाँ से कोई विषधर नहीं भेजा जा सकता था जो विष में बुझा एक बाण उनके वक्ष में उतार आए ? पर तब दुर्योधन बहुत छोटा था। नैसर्गिक मृत्यु तथा पशुओं पर तो कभी . उसका वश नहीं रहा किंतु उन दिनों तो वह किसी भृतक हत्यारे को भेजने की व्यवस्था भी नहीं कर सका था। अपनी असहायता उसे बहुत कचोटती थी। और तब उसके मन में अनेक योजनाएँ जन्म लेने लगती थीं । यदि उसके बड़े होने तक पांडु वन से हस्तिनापुर नहीं लौटे तो वह किसी न किसी हत्यारे को अवश्य ही उनके पीछे भेज देगा या फिर सैनिकों को ही भेज देगा पूरी की पूरी एक वाहिनी अथवा सारी सेना कि वे वहाँ जा कर पांडु की हत्या कर आएँ। पर यदि पांडु उसके बड़े होने से पहले ही हस्तिनापुर लौट आए तो ? इस आशंका से वह पागल हो उठता था और तब उसके मन में विभिन्न प्रकार के तरकों का झंझावात चलने लगता था । पांडु और धृतराष्ट्र-दोनों भाइयों में उसके पिता बड़े हैं राज्य उनको ही मिलना चाहिए था | यह राज्य पांडु को क्यों दे दिया गया ? इसलिए कि उसके पिता अंधे थे ? नेत्रहीन थे ? पर उसके पिता अंधे ही क्यों थे ? जब प्रत्येक मनुष्य के दोनेत्र होते हैं तो उसके पिता ही नेत्रहीन क्यों थे ? उसका मन विधाता से लड़ने को हो आता । उसी के साथ ऐसा अन्याय क्यों ? विधाता स्वयं क्यों नेत्रहीन नहीं हुए ? उसके पिता ही क्यों हुए ? वैसे उसे अपने पिता के नेत्रहीन होने में कोई आपत्ति नहीं थी। आपत्ति इस बात में थी कि उन्हें राज्य क्यों नहीं मिला ? संसार में अपंग तो अनेक लोग होते हैं पर उनसे उनके पिता का उत्तराधिकार तो नहीं छीन लिया जाता । उसे समझाया गया कि नियम यही है कि राजा को अपंग नहीं होना चाहिए ? पर वह नियम को तो तभी तक स्वीकार कर सकता था जब त्तक चह उसके अनुकूल दो । प्रतिकूल नियमों से उसको कोई सहानुभूति नहीं थी । ऐसा नियम क्यों नहीं बनाया गया कि राज्य बड़े पुत्र को ही मिलेगा वह चाहे अपंग और अपाहिज ही क्यों न हो । दुर्योधन बनाता तो ऐसा ही नियम बनाता । पर वह नियम बना नहीं सकता था । उसके जन्म से पूर्व ही राज्य उसके पिता के हाथों से छीनकर पांडु को दिया जा चुका था पांडु वन भी जा चुके थे। अपने जन्म से पूर्व वह राज्य संबंधी नियम कैसे बनाता । नियम तो वह आज भी नहीं बना सकता । शास्त्रों की रचना वन में बैठे ऋषि करते हैं जिनके पास न अपना राज्य है न किसी का राज्य उन्हें छीनना है। उन्हें क्या पता कि भाइयों में सबसे बड़े होने पर भी राज्य का न मिलना कितना कष्टप्रद है। तो फिर उन ऋषियों को राज्य संबंधी नियम बनाने का अधिकार किसने दे दिया जिनके पास न राज्य है न जिन्हें राज्य मिलने की कोई संभावना है। राज्य तो दुर्योधन को मिलना है । चंचना की संभावना भी उसको ही होती है जिसके पास कुछ हो । ऋषियों का क्या है। तो क्यों न नियम बनाने की अनुमति भी केवल उसे ही हो जिसका निर्वन्ध 19
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