चिंता छोडो सुख से जियो | Chinta Chhodo Sukh Se Jiyo

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Book Image : चिंता छोडो सुख से जियो  - Chinta Chhodo Sukh Se Jiyo

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जाज की परिधि में रहिये दे ' कल की चिन्ता छोड़ दो, ईसा के इन शब्दों को सिद्ध पुरुष की वाणी अथवा पूर्वी रहस्पवाद कशकर कई लोग टाल देते हैं। उनका कहना हैं ” कल की चिन्ता तो करनी ही एढ़ेगी, परिवार की सुरक्षा के लिये बीमा भी कराना ही होगा, वृद्धावस्था थे लिये बचत भी करनी होगी। ' ठौक हैं भविष्य के लिये योजनाएँ अवश्य बनाइए, पर पहले प्रमु दैसा के बचनों बा तात्ययं समझने की भी तो कोशिश कीजिये ! कठिनाई यह है कि तीन सी वे एव अनुवादित ईसा के शब्दों का आज भी वही अर्थ लगाया जाता दै जो सम्राठ सन्त के गासन काल मे लगाया जाता था । तीन सो चर्प पूर्व विचार का अर्य प्रायः च्न्ता से लगाया जाता था) यदि ईसा के अमिप्राय को की सही सही किया गया है तो घाइयल के आधुनिक संस्करण में। जिसमे कहा गया है कि ” क की चिन्ता छोड दो। ” ढ़ पर विचार अवद्य कीजिये, उस पर मनन कीलिये, योजनाएँ बनाइये, तयारियों कीजिये, किन्तु उसके हिये चिन्तित मत होटये। युद्ध काल में दमारे सेनापति, कछ के लिये योजनाएँ: बनाते थे पर वे उसके लिये चिन्तित नहीं होते थे। अमरिकी नो सेना के निर्देशक एडमिरठ अरेस्ट किंग कहा करते थे कि ” मैने उपलब्ध उत्तम साधनों से सज्जित अपने वीर सैनिकों को श्रेष्ठ मिगन पर मेजा है और यही में कर सकता हूँ। ” “ यूदि पोन टूच जाए तो में उसे ऊपर नहीं ला सकता । यदि उसे ट्ूवना है तो वह इवेगा दी । में उत्ते रोक महीं सकता । जो हो चुका उस पर सिर पीटने से तो यद्दी अच्छा है कि आगे की समस्याओं पर विचार झिया जाए। यदि मैं ऐसी उल्शनों को अपने पर हावी दोने दूँ तो मेरा तो जीना दी मुष्किल हो जाए ! ”' चाहे युद्ध में हो चादे शान्ति में, सद्दी' ओर गठत विचार धारा में मुख्य अन्तर यहीं है कि सद्दी विचार धारा प्रयोजन और परिणाम पर आधारित रहती है और हमें रचनात्मक कार्य-विधि की ओर प्रेरित करती है । इसके विपरीत गत विचार धारा प्रायः उद्देग और स्नायु विधटन का देतु बनती है | हाल ही में मने न्यूयॉर्क टाइग्स के प्रकाशक आर्थर देश सत्जवर्गर से मेंट की थी | उन्होंने मुन्ने बत्ताया कि युरोप में द्वितीय के छिड़ने के समय वे अपने भविष्य के विपय मे इतने चिन्तित हो गये थे कि उनकी नींद तक हराम हो गयी । प्रावः अर्थ रात्रि के समय उठ कर वे केनवास और रग लिये शीशे के सामने जा भ्रठते और क्पनी तस्वीर घनाने का प्रयास करते । चित्रकारी के सम्बन्ध में उनका कोई अनुभव नहीं था किनु अपने मस्तिष्क से चिन्ता हृटाने के लिये वे जैसे - तैसे बनादी ठेते थे । उन्होंने आगे बताया कि एक चच में हुए प्रवचन को सूत्र रूप मे यदण करने के उपरान्त ही वे चिन्तामुक्त हो शान्ति से जी सके । वह प्रवचन इस प्रकार था--




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