विज्ञानं पत्रिका | Vigyan Patrika

Vigyan Patrika by डॉ शिवगोपाल मिश्र - Dr. Shiv Gopal Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जाती है क्योंकि यह नियंत्रण सैद्धान्तिक गणनाओं के आधार पर न होकर वास्तविकता के आधार पर होता है | रडार २७1०८ वास्तव में रेडियो डिटेक्शन एण्ड रेंजिंग का संक्षिप्त रूप है। भूमि पर स्थित इस संयत्र से आकाश में पराउच्च वाली तरंगे विमानों अथवा अन्य ठोस वस्तुओं से टकराकर परावर्तित होती हैं तथा भूमि स्थित संयंत्रों द्वारा पुनर्ग्रहीत की जाती हैं। इस परावर्तित तथा प्रसारित तरंग के बीच कुछ समय का अन्तर रहता है क्योंकि तरंग को भूमि से विमान तक जाने में और वापस भूमि तक आने में कुछ समय लगता है। समय के इसी अन्तर को तरंग की गति से गुणा करने से हमें रडार यंत्र से विमान की दूरी ज्ञात हो जाती है। इसी परावर्तित तरंग को हम रडार के पर्दे पर विमान के बिम्ब के रूप में देखते हैं । यदि आकाश में कोई विमान नहीं है तो रडार पर्दे पर कोई बिम्ब नहीं दिखेगा किन्तु विमान के उस क्षेत्र से गुजरते ही रडार के पर्दे पर उसका बिम्ब दिखने लगता है इसीलिए रडार को निगरानी के लिए भी प्रयुक्त किया जाता है| रडार दो प्रकार के होते हैं- प्राथमिक एवं द्वितीयक | प्राथमिक रडार में रेडियो तरंगें भूमि पर स्थित ट्रांसमिटर से प्रसारित होकर विमान तक जाती हैं तथा विमान से टकराकर भूमि पर वापस आती हैं जबकि द्वितीयक रडार में भूमि से प्रसारित तरंगों को विमान में स्थित रिसीवर ग्रहण करता है और प्रत्युत्तर में विमान द्वारा एक अन्य तरंग प्रसारित की जाती है जिसकी आवृत्ति भिन्‍न होती है। इस प्रकार द्वितीयक रडार केवल वे ही बिम्ब दिखाते हैं जो विमान द्वारा पुनर्प्रसारित किए गए हों जबकि प्राथमिक रडार पहाड़ियों घने बादलों ऊँचे भवनों आदि के भी बिम्ब विमान के बिम्ब के साथ दिखलाते हैं । प्राथमिक रडार काफी भरोसेमन्द संयंत्र हैं किन्तु इनमें एक कमी होती है कि विमान के अलावा अन्य ऊँची वस्तुएँ जैसे पहाड़ियाँ घने बादलों ऊँचे भवन आदि भी पर्दे पर दिखाई पड़ते हैं । इससे विमान को उसके बीच से दिखने में कठिनाई होती है। इसके अलावा यह रडार नियंत्रक को विमान की ऊँचाई गति आदि का भी पता नहीं बताता । इसी कारण नियंत्रक को विमान चालक द्वारा बताई गई ऊँचाई के आधार पर यातायात नियंत्रण करना पड़ता है। साथ ही पर्दे पर दिखने वाली अनेक अवांछनीय वस्तुएँ भी नियंत्रण में व्यवधान उत्पन्न करती हैं। जहाँ तक द्वितीयक रडार की बात है तो इसमें एकदम साफ-सुथरा दिखता है और उस पर केवल सम्बन्धित विमान ही नजर आते हैं । इसके अलावा इस रडार में एक और बड़ी सुविधा उपलब्ध है । विमान द्वारा पुन प्रसारित तरंगों के साथ विमान का सम्बोधन चिन्ह उसकी ऊँचाई तथा गति आदि भी साथ ही प्रसारित की जाती है जो रडार के पर्दे पर दिखती रहती है। इस प्रकार विमान यातायात नियंत्रक को इन महत्वपूर्ण बातों की भी जानकारी प्राप्त होती रहती है । हमारे देश में हैदराबाद त्रिवेन्द्रम दिल्‍ली मुम्बई हवाई अड्डों पर द्वितीयक रडार लगाए जा चुके हैं । द्वितीयक रडार विमान की वास्तविक ऊँचाई के. बारे में जानकारी देता रहता है फलस्वरूप विमानों को आपस में टकराने से आसानी से रोका जा सकता है क्योंकि दो विमान यदि एक ही ऊँचाई पर हैं तो उनके दुर्घटनाग्रस्त होने की प्रबल सम्भावना होती है चाहे वे किसी भी कारण से एक ऊँचाई पर हों । वास्तव में विमानों की ऊँचाई को तीन प्रकार से प्रदर्शित किया जाता है। पहली प्रणाली के अन्तर्गत यह ऊँचाई भूमि तल से दर्शायी जाती है किन्तु इसमें एक समस्या यह है कि भूमि की ऊँचाई भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहती है। अतः विमानों के संदर्भ में प्रायः भूमि तल से उनकी ऊँचाई प्रदर्शित नहीं हो पाती है| दूसरी प्रणाली के अन्तर्गत विमानों की ऊँचाई प्रदर्शित करने के लिए उनकी ऊँचाई समुद्र तल से दर्शायी जाती है जिसे अल्टीट्यूड कहते हैं । चूँकि प्रत्येक स्थान समुद्र तल से ज्ञात है- जैसे मुम्बई की समुद्र तल से ऊँचाई 8 मीटर लखनऊ की 122 मीटर दिल्‍ली की 245 मीटर आदि | अत विमान की भूमि तल से ऊँचाई में उस स्थान की समुद्र तल की ऊँचाई का योग करने से विमान की समुद्र तल से ऊँचाई का पता लगता है। मार्च 2002 विज्ञान 14




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