संजीवनी | Sanjivanee

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Sanjivanee  by रमाकान्त शुक्ल - Ramakant Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऐश्वर्य हमारा संरक्षित सब जीवों पर प्राणी प्रत्येके हमाराही है आराधक हम पुरोडाश शाकल्य हव्य पाते आये हो सका आज तक कोई नहीं कभी बाधक । हम मरुत्वान्‌ मघवान्‌ विडौजा कहलाये हम वृद्ध-श्रवा सुरेन्द्र पाक शासन भी हैं हम अग्नि वरुण यमराज कुवेराधिपति बने प्राणी में भरी प्रतिष्ठायें शासन की हैं । हम अशनि वज्र दम्भोलि तडित्‌ के अस्त्र-रास्त्र करके प्रयोग जीवों पर अनुशासन रखते मर्यादा की रेखाओं के प्रहरी हम दै हम संसृति की सब परम्परा पावन रखते 1 मानव यक्षो गंघवं रक्ष किन्नर पिशाच वेताल प्रेत पुरियों के हम संरक्षक हैं पडुपति धनपति िरपति जिसके हैं अंग सदा जिसके सिंहासन की सेवा में तक्षक हैं । हे देव गुरो ! हे वृहस्पते ! कसी निष्कृति ! हम दैत्यों से कब तक लड़-लड़कर हारेंगें ? संजीवन मंत्र बिना देवों का त्राण नहीं कब तक मरकर जीने वालों को मारेगे १. जग पडे योग निद्रा से सहसा विवृध बन्य खुल गये नेत्र पीताभ शान्त ज्वाला दहकी हिल गये पिशङ्गी जटा जूट मस्तकं ऊपर नन्दन बन की मन्दार धवल कलियां महकीं ।




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