कबीरवचनामृत | Kabiiravachanamrita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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कबीर महिदी कर घालिआ, आपु पिसाइ पीसाइ ।
ते सह बात न पूली, कबहु न लाई पाई ।। ६५॥
कषीर जिह दर आवत जाति अहु, हटके नाही कोह ।
सो दर कैसे खोड, जो दरू एेसा होई ॥ ६६ ॥
केवीर इवा था पे उबर, गुनकी लहरि भवकि ।
जब देखिड बेडा जरजरा, तथ उति परिउ हउ फर्क ॥६७
कबीर पापी भगति न भावई हरि पूजा न सुहाई ।
माखी चदनु परहरे, जह बिगंध तह जाइ ॥ ६८ ॥
कबीर बेदु मुआ रोमी मया, मूरा सबु संसारु।
एकं कवीरा न मृञ्चा, जिह नाही रोवनहार ॥ && ॥
कबीर राम न घिआइओ।, मोटी लागी खोरि |
काइआ हांडी काठ की, न उह चरे बहोरि ॥ ৩০ ||
कबीर ऐसी होइ परी, मनको भावत कीन ।
मरने ते किआ डरपना, जब हाथ सधउरा लीन ॥ ७१॥
केवीर रस को गांड चुक्षीएे, गुन कड मरीएे राई ।
अवगुनाआर मानस, भलो न कहि है कोई ॥ ७२॥
करवीर गागरि जल भरी, आजु कालि जह एूरि ।
गुरु जु चेतदहि आपनो, श्रध माली जहिगे लुटि ॥७३॥
कबीर कूकरु राम को, म्ुतीआ मेरो नाउ।
गले हमारे जेवरी, जह खिंचे तह जाउ ॥ ७४ ॥
कबीर जपनी काठ की, फिआ दिखलावहि लोइ।
हिरदे राम्म न चेतही, इह जपन्ी किआ होइ ॥ ७५॥
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