विश्व की विभूतियां | Vishv Kii Vibhuutiyaan

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Vishv Kii Vibhuutiyaan by हरिभाऊ उपाध्याय - Haribhau Upadhyay

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हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।

विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन्‌ १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन्‌ १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन्‌ १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ विश्व को चिभूतियाँ की रक्षा करने के लिए आवाज बुलन्द करने के डद्देश्य से नेटाल् इंडि. यन कांग्रेस' नामक संस्था को जन्म दिया। उनके जीवन के वे कई प्रयोग जेसे सत्याग्रह के अलावा शारीरिक श्रम, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह आदि जिनके द्वारा वह आगे भारतवर्ष में “महात्मा! पदवी को पहुँच गये, दक्षिणी अक्रिक्रा में ही हुए । जो तप व साधना उन्होंने दक्षिणी अ्रक्रिका में की वही हिंदुस्तान में आकर बहुत-कुछ फूली-फली | महामान्य गोखले से उनकी घनिष्टता दक्षिण अक्रिका में ही हो বাই थी । उनके व्यक्तित्व से वह इतने प्रभावित हुए थे कि उन्हें उन्होंने अपना 'राजनतिक गुरु? कहा है। स्व० गोखले की आज्ञा से उन्होने एक वर्ष तक सारे भारत में प्रवास किया, जगह-जगह की परिस्थिति का अच्छी तरह सूचंम निरीक्षण किया व श्रहमदाबाद्‌ मे “सत्याग्रहाश्रम? खोला । इसमें कताई-बुनाई की शिक्षा के अलावा सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचये, अपरिग्रह, अस्तेय, अभय, स्वदेशी, अस्वाद, शरीर-श्रम, स्ंधमं-सम- भाव, श्रस््ृश्यता-निवारण, इन चतो के पालन का अ्रभ्यास कराया जाता था ।सर्वोँदय' नामक पुस्तक में उन्होंने अहिंसात्मक स्वराञ्य' के जिस आदुश का चित्र उपस्थित किया है डसीको व्यवहार में लाने का यद्द प्रयास समा जा सकता है । भारत में सत्याग्रह के.प्रयोग भारत मं श्राते दही उन्होने ्रपने नवोन सत्याग्रह” नामक शस्त्र का प्रयोग यहां की समस्याओं को हल करने में किया । वह सीधे एकाएक राजनेतिक क्षेत्र में नहीं आये। समस्याएं व परिस्थितियाँ जेसे-जेसे उन्हे उसकी ओर स्वाभाविक रूप से खींचती जाती थीं वेसे-ही-वेसे वह उनकी तरफ आगे बढ़ते जाते थे । सस्याग्रही किसी के सिर पर जबर- दस्ती चढ़कर नहीं बेठता। परिस्थिति की आवश्यकता व कत्त व्य का तकाजा होता है तब वह बड़े-से-बड़े साहस व जोखिम उठाने में भी नहीं हिचकिचाता । | गांधी जी अपने विचारों व सिद्धान्तों के बड़े ही दृढ़ भादमी हैं ।




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