बुन्देलखंडकी ग्राम कहानियां | Bundelakhand kii Graam Kahaaniyaan

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Bundelakhand kii Graam Kahaaniyaan by पंडित शिवमहाय चतुर्वेदी -pandit shivmahaay chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लेखक का वक्तव्य ०? कहानियों की चहल पहल रहती है। माता या बूढ़ी दादी कहानी कहती श्रौर बच्चे सुन सुनकर प्रसन्न होते हैं | श्रनेक कहानियाँ सुनलेनेपरभी दादी, एक ओर सुनाओ' की माँग बनी ही रहती है । | बहुतसी कह्ानियोंमें बीच बीचमें दोहा, चौबोला या गीत भी कहे जाते हैं। कहानी कहने वाले उन्हें हाव - भाव के साथ गाकर कहते हैं ! उससे कष्ानी की रोचकता श्रोर भी बढ़ जाती है । प्रत्येक कथकका कहानी कहनेका अपना ढंग होता है। अ्रनेक पुराने लोग प्रायः एक लम्बी-चौड़ी भूमिकाके साथ श्रपनी कहानी प्रारंभ करते हैं, जोकि बड़ी मज़ेदार होती है। उसका कुछ अंश इस प्रकार है ;-- ““किस्सासी भूटी न बरोतेंसी मीढी । घड़ी घड़ी कौ विश्राम, को जाने सीताराम | न केबे बारेको दोष, न सुनने बारेकां दोष । दोष तो उसीको जीने किस्सा बनाकर खड़ी करी । श्रौर दोष उसीको भी नदीं कायसें ऊने रेन काटवेके लाने बनाके खड़ी करी । शक्कर को घोड़ा सकल- पारेकी लगाम । छोड़दो दरियाके बीच, चला जाय छुमाछम छुमाछम । हस पार घोड़ा, उस पार घात | न घास घोड़ा को खाय, न घोड़ा धासको खाय । हाथ भर ककड़ी नौ हाथ ब्रीजा । होय न होय खेरो गुन होय! जरिया को काँटो, श्रठारा हाथ लाँबो |! श्राधो हिरियाने चर लव। श्रध पै बसे तीन गाँव ! एक ऊजर, एक खूजर एकमें मानसई नेयाँ ! जी में मानस नैयाँ ऊमे बसे तीन कुम्हार ! एक इ ठा, एक लूला, एकके हा थह नेयौ १ जीके हाथ नैया জন বন্দী तीन हँड़ियाँ | एक श्रोंगू एक बोंगू एकक श्रोंठई नेयाँ ! जीमें श्रोंठ লষাঁ জন चुरेए तीन चवर । एक श्रच्चो, एक कच्चो, एकको चोट ने श्राई । जीमें नेवते तीन वामन । एक श्रफरो, एक डफरो एककों भूखई नेयाँ !... ... ... .--जों इन बातन क | भूठी जाने तो राजाकों डाँड़ श्रोर जातकों रोटी देय। ... ....... ... कहता तो ठीक पे सुनता सावधान चाहिए ।......”” इत्यादि । श्रपनी इस परम रोचक श्रौर विलक्षण भूमिका के साथ कहानी कहने वाला मानो श्रपने श्रोताश्रोको कहानी जगतके उस श्रद्धुत श्रौर ग्रलोकिक वातावरण में खींच कर ल्लेजाता है जहाँ भौतिक जगतकी कोई चिन्ता उन्हें नहीं व्यापती। कल्पनाके घोड़े पर बैठकर हम न जाने कहाँ कहाँ की सैर करने लगते है ।




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