दबेपांव | Dabepaanv
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
221
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दबेपॉव ७
हम लोग क़िले के मन्दिरों को देखते फिरे। मूर्तियों की
मुद्रा एकान्त शान्ति की थी । उन सबका एकत्र प्रभाव मन में.
सुनसान पैदा करता था| परन्तु उस सुनसान में होकर जब
मन विष्ण_ के अ्र्धस्मित की ओर झांकता था, तब उस स्मित
की झांकी में जीवन दिखलाई पड़ जाता था ।
धूमते घूमते हम रोग क़िले के छोर पर पहुँचे । उस
स्थान का नाम नाहर घाटी है। वहाँ खड़े होकर बेतवा नदी
का ऊबड़-खाबड़ प्रयास देखा। क़िले की पहाड़ी से सट कर
बहती है। नदी-तल में टोरें, पत्थर जल-राशियाँ और वक्ष-
समूह हैं । नाहर घाटी के नीचे गहरा नीला जल, और ऊपर,
पहाड़ी पर से, बहता हुआ धूमरा काला शिलाजीत ।
नदी तल में, एक टापू पर, क़तार बन्द वृक्ष--समूह को
देखकर मेरे मित्रों को आश्चर्य हुआ । एक ही क़द के,
एक से डोल के, क़तारों में खड़े पेड़ों को देखकर, मनुष्य के
बनाये उद्यान का भ्रम हुआ । परन्तु उस वृक्ष समूह मे प्रकृति
और केवल प्रकृति की कला के सिवाय और किसी का हाथ
था ही नहीं, इसलिए भ्रम को कोई गुन्जायश नहीं मिली ।
पहाड़ों, जंगलों श्रोर नदी की करामातों के भिन्न भिन्त
दृश्यों को देखते देखते मन थकता ही न था। यहाँ तक कि
गांठ का सब खाना निबटा लेने के बाद भी, काली अंधेरी
रात और बिकट बीहड़ मार्ग की चिन्ता न थी; गई रात
जाखलोन पहुंच कर क्या खायेंगे इसकी कोई फ़िक्र नहीं ।
जब रात हो गई तब हम लोग वहां से टले ।
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