चरणानुयोग | Charananuyog
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
48 MB
कुल पष्ठ :
814
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१८] . चरणानुयोग ज्ञान गुण प्रमाण
मे ५४
सूत्र २४-२७
निषिक्त
उ०--भावप्पमाणे तिविहे पण्णत्ते, तं नहा- उ०--भाव प्रमाण तीन प्रकार का कहा गया है । यथा--
१, गुणप्पमाणे, २. णयप्यमाणे, ३. संखप्पमाणे 1 (१) गुण प्रमाण, (२) नय प्रमाण, (३) संख्या प्रमाण ।
-अणु० सु० ४२७
०-से छ तं जीवगुणप्वमाणे ? प्र०--जीव ग्रुण प्रमाण कितने प्रकार का है ?
उ3०-- जीवगुणप्पमाण तिविहे पष्णत्ते, तं॑ जहा-- ०--जीव गुण प्रमाण तीन प्रकार का कहा गया है।
१. णाणगुणप्पमाणे, २. दंसणगृणप्पमाणे, ३. चरित्त- यथा--(१) ज्ञान गुण प्रमाण, (२) दर्शन ग्रुण प्रमाण, (३) चारिद
गुणप्पमाण य । -जणु० सु० ४३१५ गण प्रमाण ।
णाणगुणप्पमाणं-- ज्ञान गुण प्रमाण-
२५.प०---ते क तं णाणगुणप्पमाणे ?
उ०--णाणगुणप्पमाणे चउचिवहे पण्णत्ते, तं जहा--
१. पच्चक्चे, २. अणुमाणे, ३. जवम्मे, ४, मागमे ।
प०~-से.कि तं पच्चक्खे ?
उ०-- पच्चक्खे दुचिहे पण्णत्ते, तं जहा- उ०--प्रत्यक्ष दो प्रकार का केहा गया है । यथा-
१. इंदियपच्चक्खे य, २. नो इंदियपच्चक्खे य । (१) इन्द्रियप्रत्यक्ष, (२) नो इन्द्रियश्रत्यक्ष ।
प०--से कि त॑ इंदियपच्चक्ले ?
'उ०--इंदियपच्चकर्खे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा---
सोइंदियपच्चवर्खे-जाव-फार्सिदियपच्चक्खे,
से त॑ इंदियपच्चक्खे ।
२६. प०--से कि ते नो इंदियपच्चवर्खे ?
उ०- नो इंदियपच्चक्वे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा -
२५. प्र०--ज्ञान ग्रुण प्रमाण कितने प्रकार का है ?
उ०--ज्ञानगुण प्रमाण चार प्रकार का कहा गया है । यवा-
(१) प्रत्यक्ष, (२) अनुमान, (३) उपमा, (४) आगम ।
प्र०--प्रत्यक्ष कितने प्रकार का है ?
प्र०--इन्द्रिय प्रत्यक्ष कितने प्रकार का है ?
उ०--इन्द्रियप्रत्यक्ष पाँच प्रकार का कहा गया है । यथा--
श्रोत्रेन्द्रिय प्रत्यक्ष--यावत् - स्पर्शेन्द्रिय प्रत्यक्ष ।
इन्द्रिय प्रत्यक्ष समाप्त
२६. प्र०-- नो इन्द्रिय प्रत्यक्ष कितने प्रकार का है ?
उ०--नो इन्द्रियप्रत्यक्ष तीन. प्रकार का कहा गया हैं।
१, जहिणाणपच्चक्खे, २. मणपन्जवणाणपच्चक्खे, यथा--(१) अवधिज्ञानप्रत्यक्ष, (२) मनःपयंवन्ञानप्रत्यक्ष, (३)
३. केवलणाणपच्चक्े, केवलज्ञानप्रत्यक्ष ।
से तं नो इंदियपच्चक्खे, से तं पच्चक्खे । नो इन्द्रियप्रत्यक्ष समाप्त । प्रत्यक्षसमाप्त ।
२७, प०--से कि त॑ अणुमाणे ? प्रण--अनुमान (प्रमाण) कितने-प्रकार का है ?
उ०--अनुमान तीन प्रकार का कहा गया है । यथा--
(१) पूवंवत्, (२) शेषवत्, (३) दृष्टसाधर्म्येवत् ।
१. सम्म चरिते पढमे; १. दंसण, २. नाणे य, ३. दाण, ४, लाभे य 1
५. उवभोग, ६. भोग, ७. वीरिय, ८. सम्म, €. चरित्ते तह वीए 11--1
-.- (ङ) ४ चउनाण. ३ अ्नाणतियं, ३ दंसणतिय ५ पंचदाणलद्धीमो 1
१ समत्तं, १ चास्ति चं, १ सरंजमासंजमे तइए 1--1
४ चउगइ्, ४ चउक्कसाया, ३ लिगत्तियं ६ लेसछक्क १ अन्नाणं ।
१ भिच्छत्त १ मसिद्धत्तं, १ असंजमे तह चउत्थे ॐ 1-11
पंचमगसम्मि य भावे, १ जीव, २ अभव्वत्त, ३ भव्वत्ता चेव,
(न भावाणं, भेया एमेव तेवन्ना ।1-11 --घ्थानांग टीका से उद्ध त्त
१ (क) यहां गुणप्रमाण और नयप्रमाण लिए गणितानुयोग ०
र নিন णितानुयोग (काल प्रमाण पु० ६९१ से काललोक मेँ तथां क्षेत्रभरमाण
.*(ख) इससे आगे का एक सू द्रव्यानुयोग में दिया है 1
उ०--अणुमाणे तिविहे पण्णत्ते, तं नहा--
१. पुव्ववं, २. सेसवं, ३. दिह साहम्मवं ।
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