चरणानुयोग | Charananuyog

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Charananuyog  by कमल श्री - Kamal Sri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८] . चरणानुयोग ज्ञान गुण प्रमाण मे ५४ सूत्र २४-२७ निषिक्त उ०--भावप्पमाणे तिविहे पण्णत्ते, तं नहा- उ०--भाव प्रमाण तीन प्रकार का कहा गया है । यथा-- १, गुणप्पमाणे, २. णयप्यमाणे, ३. संखप्पमाणे 1 (१) गुण प्रमाण, (२) नय प्रमाण, (३) संख्या प्रमाण । -अणु० सु० ४२७ ०-से छ तं जीवगुणप्वमाणे ? प्र०--जीव ग्रुण प्रमाण कितने प्रकार का है ? उ3०-- जीवगुणप्पमाण तिविहे पष्णत्ते, तं॑ जहा-- ०--जीव गुण प्रमाण तीन प्रकार का कहा गया है। १. णाणगुणप्पमाणे, २. दंसणगृणप्पमाणे, ३. चरित्त- यथा--(१) ज्ञान गुण प्रमाण, (२) दर्शन ग्रुण प्रमाण, (३) चारिद गुणप्पमाण य । -जणु० सु० ४३१५ गण प्रमाण । णाणगुणप्पमाणं-- ज्ञान गुण प्रमाण- २५.प०---ते क तं णाणगुणप्पमाणे ? उ०--णाणगुणप्पमाणे चउचिवहे पण्णत्ते, तं जहा-- १. पच्चक्चे, २. अणुमाणे, ३. जवम्मे, ४, मागमे । प०~-से.कि तं पच्चक्खे ? उ०-- पच्चक्खे दुचिहे पण्णत्ते, तं जहा- उ०--प्रत्यक्ष दो प्रकार का केहा गया है । यथा- १. इंदियपच्चक्खे य, २. नो इंदियपच्चक्खे य । (१) इन्द्रियप्रत्यक्ष, (२) नो इन्द्रियश्रत्यक्ष । प०--से कि त॑ इंदियपच्चक्ले ? 'उ०--इंदियपच्चकर्खे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा--- सोइंदियपच्चवर्खे-जाव-फार्सिदियपच्चक्खे, से त॑ इंदियपच्चक्खे । २६. प०--से कि ते नो इंदियपच्चवर्खे ? उ०- नो इंदियपच्चक्वे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - २५. प्र०--ज्ञान ग्रुण प्रमाण कितने प्रकार का है ? उ०--ज्ञानगुण प्रमाण चार प्रकार का कहा गया है । यवा- (१) प्रत्यक्ष, (२) अनुमान, (३) उपमा, (४) आगम । प्र०--प्रत्यक्ष कितने प्रकार का है ? प्र०--इन्द्रिय प्रत्यक्ष कितने प्रकार का है ? उ०--इन्द्रियप्रत्यक्ष पाँच प्रकार का कहा गया है । यथा-- श्रोत्रेन्द्रिय प्रत्यक्ष--यावत्‌ - स्पर्शेन्द्रिय प्रत्यक्ष । इन्द्रिय प्रत्यक्ष समाप्त २६. प्र०-- नो इन्द्रिय प्रत्यक्ष कितने प्रकार का है ? उ०--नो इन्द्रियप्रत्यक्ष तीन. प्रकार का कहा गया हैं। १, जहिणाणपच्चक्खे, २. मणपन्जवणाणपच्चक्खे, यथा--(१) अवधिज्ञानप्रत्यक्ष, (२) मनःपयंवन्ञानप्रत्यक्ष, (३) ३. केवलणाणपच्चक्े, केवलज्ञानप्रत्यक्ष । से तं नो इंदियपच्चक्खे, से तं पच्चक्खे । नो इन्द्रियप्रत्यक्ष समाप्त । प्रत्यक्षसमाप्त । २७, प०--से कि त॑ अणुमाणे ? प्रण--अनुमान (प्रमाण) कितने-प्रकार का है ? उ०--अनुमान तीन प्रकार का कहा गया है । यथा-- (१) पूवंवत्‌, (२) शेषवत्‌, (३) दृष्टसाधर्म्येवत्‌ । १. सम्म चरिते पढमे; १. दंसण, २. नाणे य, ३. दाण, ४, लाभे य 1 ५. उवभोग, ६. भोग, ७. वीरिय, ८. सम्म, €. चरित्ते तह वीए 11--1 -.- (ङ) ४ चउनाण. ३ अ्नाणतियं, ३ दंसणतिय ५ पंचदाणलद्धीमो 1 १ समत्तं, १ चास्ति चं, १ सरंजमासंजमे तइए 1--1 ४ चउगइ्‌, ४ चउक्कसाया, ३ लिगत्तियं ६ लेसछक्क १ अन्नाणं । १ भिच्छत्त १ मसिद्धत्तं, १ असंजमे तह चउत्थे ॐ 1-11 पंचमगसम्मि य भावे, १ जीव, २ अभव्वत्त, ३ भव्वत्ता चेव, (न भावाणं, भेया एमेव तेवन्ना ।1-11 --घ्थानांग टीका से उद्ध त्त १ (क) यहां गुणप्रमाण और नयप्रमाण लिए गणितानुयोग ० र নিন णितानुयोग (काल प्रमाण पु० ६९१ से काललोक मेँ तथां क्षेत्रभरमाण .*(ख) इससे आगे का एक सू द्रव्यानुयोग में दिया है 1 उ०--अणुमाणे तिविहे पण्णत्ते, तं नहा-- १. पुव्ववं, २. सेसवं, ३. दिह साहम्मवं ।




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