पिकनिक | Piknik

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Piknik by कमलादेवी चौधरी - Kamaladevi Chaudhary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जि स्व तो झेखर में यहाँ नहीं रहूंगी । मुझे क्षमा करना झेखर गुरु से मुके एक प्रकार का मय लगता है । उनसे अधिक मुभ्झे तुम पर बीच ही में बात काटकर झेस्वर ने ताड़ना के दाब्दों में कहा--कसी बातें करती दो सुरीला गुरुदेव पर भक्ति करो । काँपते हुए स्वर से सुरीला ने कहा--रोखर मंने अनेक बार देखा है गुट छिप- कर हम दोनों को बातें सुनते है । तो दोष क्या हैं १ हम लोगों पर दृष्टि रखना गुष्ठ का कतंब्य है । सिसकते हुए सुरीला बोली--इतना ही नहीं झोखर रात्रि में मुभ्े कड़े बार झुबहा डूआ किवाड़ की दराज में से कोई मेरे कमरे में माँकता है । तुमने जो अपना. चित्र बनाकर मुभे दिया था वह मेरे कमरे से कोई चुराका ले गया । मुझे यह काम _ गुरु का ही जान पढ़ता है । में यहाँ नहीं रहूँगो या फिर तुम कुछ दिनों बाद जाना । सुरोला सिसक-सिसककर रोने लगी । क्षणभर मौन रहने के बाद उसने शेखर से कहा--दोखर मेरा मन तुमसे भय नहीं खाता है । .... इस सरलता पर शेखर हँस दिया । और इस समय इस प्रसंग को भुलाने के लिए उसने कहा--आओ कुछ देर रामायण का पाठ करें । ७ सुरीला रामायण गाने लगी । शेखर आघा लेटा हुआ सुनने लगा । पुष्पव़ादिका का सनोरम प्रसंग चल रहा था ८ दोनों तुलसीदास के भक्तिस का स्वाद ले रहे थे बित्कुल रासाय्रण में तन्मय थे । और गुरु? गुरु छत की खिड़की पर आधी रात में दोनों के बीच का भेद लेने बेटे थे । जाय्रत अवस्था में ही गुरु को स्वप्त-सा भान हुआ--यह सुरीला कितनी सुन्दर है मानों सौन्दय स्वयं देवी-हप में प्रकट हुआ है । रागिणी का रूप इसकी छाया के बराबर भी न था। गुह् चौंक पड़े। आज वर्षो बाद अतीत. काल की स्मृति क्यों हिलोरें ठेने लगी १ हरि ओम उच्चारण करके गुरु ने आकाश पर हसते मा को देखा और फिर छितिज पर बठी हुई सुरीला पर दृष्टि डाली । उन्हें ऐसा जान पढ़ा मानो चन्द्रमा का कुछ भाग ट्टकर सुरीठा बन गया है । उन्हें प्रतीत होने लगा कि भगवान्‌ ने




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