महात्मा सूरदास जी | MahaatamaSoordaas G

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) सुरदाख जी स्नान करि श्राये तव श्री मदाप्रभमुजी ने प्रथम दुरदास जी के नाम सुनायो पाछे समर्पण करवाई ओर दशम स्कंघ की अनुक्रमशिका कटी से ताते सत्र दोष दूर भये तातो षूरदाख আন नवधा भक्त सिद्धि भई तब सूरदास जी मे भगवत लीला व्ण॑न करि श्रनुक्रमणिका ते सम्पूणं लीला फुरी से क्यों जानिये पाछे सूरदास जी ने बहुत पद किये पाछे भरी आचार्य्य जी महाप्रभून ने सूरदात जा के पुरुषोत्तम सहख्नाम नायो तव सूरदास जी के सम्पूर्ण भागवत स्फूर्तना भई पाछे नो पद किये सा भागवत प्रथम स्कंघ ते द्वादश स्कंध पर्य्यास किये **** “श्री श्राचाय्य जी महाप्रभून गऊघाट ऊपर तीन दिन विराजे पाछे फिर ब्रज़ के पाँव घारे तब दूरदास जी हू भरी आचार्य जी महाप्रभून के साथ ब्रज के आ्राये तब भरी महाप्रभू जी अपने श्री मुख सो कह्ौ जो सूरदास जी श्री मोकुल के। दर्शन करो से सूरदास जी श्री गोकुल के। दरडवत करी से दण्डवत्‌ करत मान्न श्री गोद्कुल की बाल लीला सूरदास जी के हृदय में फुरी और सूरदास जी के द्दय में प्रथम श्री महाप्रभू ने सकल लीला श्री भागवत की स्थापी है ताते दर्शन करत मात्र घू.दाख जी के श्री गोकुल की बाललीला स्फूर्तना भई तव सूरदास जी ने मन में विचारयो जो श्री गोकुल की वाललीला के वर्णन करि के भरी आचार्य्य जी महाप्रभून के आगे सुनाइये ***-“***“ तब श्री महाप्रभू जी अपने मन में विचारे जो श्री नाथ जी के यहाँ और तो सव सेवा के मंडान भयो दे पर कीतन के सरडान नहीं कियो है ताते अब सूरदास जी के दीजिये '***** “ओर सूरदास जी ने सहस्तावधि पद किये ई तक्रा सागर किये... “सा घुरदास के पद. देशाधिपति ने छने ----` सा भगवत इच्छाते सूरदास जी मिले से सूरदास जी सो कह्यौ देशाधिपति ने****«*** सब गुनीजन मेरो यश सावत हैं ताते तुमहूँ कछु गावो *“**- से! सुनिके '-देशाधिप्रति श्रकबर बादशाह अपने मन में विचार॒यो जो ये मेरी यश कादे. को गावेंगे-* “** ---से| देशाधिपति ने पूछी जो सूरदास जी तुम्हारे लोचन तो देखियत नाहीं*** *०-“*एक समय सूरदास जी मार्ग में, जात हुते से केर




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