गोर्की के संस्मरण | Gorki Ke Sansamaran

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Gorki Ke Sansamaran by इलाचंद्र जोशी - Ilachandra Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गोर्की के संस्मरंण १२ सांसारिक बुद्धि रखते थे, बोले कि हमारे जहाज्ञ को गम्तव्य स्थान पर पहुँचने में यों ही काफ़ी समय लग चुका है, तिसपर इस नये झंझट के फेर में पड़ा जाय, तो बड़ी ज़्यादती होगी । पर पूर्वोक्त महिला बड़बड़ाती चली जाती थी ओर पूरी ताक़त से अपनी बात पर ज़ोर दे रही थी । बाद में मुझे मालूम हुआ कि वह कार्स से जापान जा रही है; टोकियों में उस की एक बहन किसी रूसी राजदूत को व्याही हुई थी, वह उसीसे मिलने जा रही थी | उसकी यात्रा का एक कारण ओर था--वह यक्ष्मा रोग से पीड़ित थी | कुछ भी हो, वह स्त्री क्या थी एक खांसी आफ़त थी | वह इस बात पर जोर देती चली गई कि जलते हुए जहाज्ञ के यात्रियों को हर हालत में बचाना होगा, ओर यात्रियों को वह इस बात के लिये उक- साने लगी कि कप्तान के पास एक 'डिपूटेशन! भेजा जाय ओर उससे जलते हूए जहाज के यात्रियों की सहायता के लिये प्राथना की जाय | पर कुछ यात्रियों ने उस मह्दिछा की इस बात पर बड़ी जबरदस्त आपत्ति उठाई, और यह दलील पेश की कि संभव है वह जलता हुआ जहाज चीनियों का हो और उसके यात्री भी चीनी हों | पर इस दलील से महिला का जोश तनिक भी उण्डा नदीं हुआ | उसके आवेग-भरे उद्गारो का तीन यात्रियों पर ऐसा जबर्दस्त प्रभाव पड़ा कि वे कप्तान के पास अपील करने के लिये चले गए, | कप्तान ने उन लोगों से कहा कि यदि उस जलते हुए जद्दाज की सहायता के लिये जाना होगा तो हम लोगों की यात्रा में ओर अधिक देर लग जावेगी; पर उन लोगों ने उसे क़ानून की धमकी दी, ओर कहा कि समुद्री यात्रा के क़ानून के अनुसार कोई भी जहाज विपत्ति में पड़े हुए किसी दूसरे जहाज की सहायता करने के लिये बाध्य है, और यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो हाज्ञकाड्ञ पहुँचते ही उसकी शिकायत को जायगी |




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