मैंने कहा | Maine Kaha

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Maine Kaha by गोपाल प्रसाद व्यास - Gopalprasad Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूंठ बराबर तप नहीं / ५ फिर बोलिए, लेकिन भाद मेरे, जग सफदर के साथ} इसीको दुनियादारी कहते हैं, इसीमें सफलता छिपी है । भूठ बोलना भी एक कला है । एक महान्‌ चदं ! इसकी महानता के आगे चित्रकारी के रंग फीके हैं, संगीत का स्वर बेसुरा है और कविता तो है ही निरर्थक ! लोग कहते हैं कि जिसने सत्य को पा लिया उसमे परमेश्वर को पा लिया। मैं कहता हूँ जिसने फूठ को पा लिया उसे और कुछ पाना ही शेष नहीं रहा ! झूठ परम तत्व है ! यह अजरामर है! सनातन है ! निर्विकह्प है ! सम्पूणं जगत्‌ में व्याप्त है। यद्यपि यह भेदाभेद से परे है, फिर भी अभ्यास और साधन के लिए मैंने इसके कुछ भेद किये हैं, जैसे--- १) शुद्ध फूठ और (२) अशुद्ध भूठ। (३) चार सौ बीस और (४) सफेद फ्रूठ शुद्ध कूठ के अन्तगेत श्नाते है । अशुद्ध भूट के अन्तगेत (५) बे-सिर- पैर की, (६) मनगढ़न्त, और (৩) হাত্দী का बाहुल्य होता है । देश काल, अवस्था और समय-संयोग के अनुसार इसके सैकड़ों श्रकार होते हैं, पर यहाँ स्थान-संकोच से उनका वर्णन नहीं किया जा सकता। फिर आज यह विपय घर-घर में वर्तमान है और हिन्दुस्तान के ३३ करोड़ देवी-देवता इसके सम्बन्ध में नित्य नये असुसंधास कर रहे हैं, इसलिए अभी से इस शास्त्र को लिपिबद्ध करना, इसकी बढ़ती को रोकना भी है। आजकल बिना भूठ के यदह शरीर रूपी गाड़ी जीवन रूपी दलद्ल को पार नहीं कर सकती | उदाहरण के लिए मान तीजिए कि आप किसी दफ्तर में बाबू हैं| बाबू भी ऐसे कि नेकनीयती के सबूत में फाइलों पर मुकते-फुकते आपकी गदंन खम खागई है। लेकिन अब आपको चार विन की छुट्टी चाहिए। निहायत जरूरी काम आ पड़ा है। काम ऐसा नहीं कि जिसे दाला जा सके । आपकी पत्नी के भाई के लड़के को जुकाम हुआ है ।हृरदम छींकता रहता है| आपकी इस! के साई-भावञ सब परेशान हैं ! उनके मैके से आने वाके छत क्सर्‌ छींकों से भरे रहते हैं। उनः का कद्दता है कि इस हालत में अगर अप बच्चे को' देखने नहीं जायेंगे तो रिश्तेदारी में नाक कट जायगी !




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