जगत और जैन दर्शन | Jagat Our Jain Darshan

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Jagat Our Jain Darshan by जैनाचार्य श्री विजयेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज - Jaincharya Shri Vijayendra Surishwarji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वृन्दावन शुरुकुल के उत्सव पर विद्यापरिषद्‌ के सभमापतिपद से ससस्‍्कृत में दिये हुए भाषण का জনতা है भाग्यशाली सभ्यमहोद्यगण । यद्यपि में इस बात को नहीं जान सकता कि विद्वानों की इस विद्यापरिषद्‌ का मुके आप ने सभापति क्यों चुना है? तथापि में इतना तो अवश्य ही कहूँगा कि यदि इस पद से किसी आ्यंसमाजी महाशय को सुशोभित किया जाता तो विशेष उपयुक्त होता । किन्तु में आप सज्जनों के अनुरोध को उल्लंघन करने मे असमर्थ होने के कारण आप सज्जनों के द्वारा दिये गये पद्‌ को स्वीकार करता हूँ । শে धर्मपरावतनमीमांसा © 9 आज की सभा का उदेश्य ।धसंपराबतनमीमांसा! रखा गया है। इसका तात्पय में तो यही सममता हूँ कि वर्तमान समय मे जो अनेक प्रकार के कुमत अपने आपको




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