हिन्दी की आधुनिक महाकाव्य | Hindi Ke Adhunik Mahakavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
488
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महाकाव्य का स्वरूप १७
है । ्मानन्दवघेन ন ध्वनि को ही काव्य की आत्मा कहा है* | कुन्तके ने वक्रोक्ति
(चिदरधतापूणं ्रभिव्यजना-शंली) को ही काव्य का प्रण माना है । मम्पट ने दोपरहित,
ব্যানালী, भ्रलकारःयुक्त तथा कभी-कमी ्रल कार-रहित शन्दायेमयी रचना फो कान्य कहा
है* । विश्वनाथ के मत में रसात्मक वाक्य ही कान्य है । जगन्ताथने रमणीय श्रयं के प्रति-
पादक शब्द को काव्य माता है * । इसी प्रकार विविध विद्वानों ने बहुत सी और परिभापाणएं
भी दी है *।
उपयुक्त काव्य-लक्षणो की सूक्ष्म आलोचना यहाँ श्रपेक्षित नही। इन परिभाषाओ्रो
के आधार पर यह निश्चित होता है कि सस्कृत में काव्य-तत्त्वों का विवेचन करने वाल
प्राच्यो के मुख्यत पाँच सम्प्रदाय (वर्ग) थे--(१) रस-सम्प्रदाय, (२) अलकार-
१. रोतिरात्मा फाव्यस्य 1
--वासंन, ्रलकार-सुत्र
२ कान्यस्यात्मा ध्वनि. 1
--श्रानन्दवघंन, ध्वन्यालोक
३ वक्रो. काव्यजीवितम् ।
-- कन्तक, बक्रोक्ति-जोवित
४ तददोषौ शन्दायौ सगुणावनलंकृती पुन. श्वापि ।
--मस्मट, कान्य-प्रकाश
५ गार्य रसातसफ काव्यस् ।
4
--विङवनाय, साहित्यदर्पण
६ रमणीयायप्रतिपादक शब्द. काव्यस् ।
“जगन्नाथ, रसगगाघर
७ (ক্ষ) संक्षेपाद्वाक्यमिष्टायेव्यवकच्छिन्ना पदावली,
फाव्यं स्फुरदलंकारं गुणवहौष-वजितम् ।
। -अग्निपुराण
(ख) नन् शब्दाथों काव्यम्--
-+रुद्रट, काव्यालकार
(य) विर्देर्दि गुणवत्काव्यसलंकारेरलकुतस् । रसान्वितं 1
---मोज, सरस्वती-कठामरण
(घ) प्रदोषो सगुणौ सालकारौ च ज्ञव्दायोौ फास्यम् )
5हेमचन्द्र, काव्यानुशासन
(5) निर्देषा लक्षणवती सरीतिर्गण-भूषिता ।
सालफार-रसानेकतृत्तिवाक्कराव्यनामभार 11
-“अयदेद, चन्द्रालोक
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