हिन्दी की आधुनिक महाकाव्य | Hindi Ke Adhunik Mahakavya

Hindi Ke Adhunik Mahakavya by गोविन्दराम शर्मा -Govindram Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महाकाव्य का स्वरूप १७ है । ्मानन्दवघेन ন ध्वनि को ही काव्य की आत्मा कहा है* | कुन्तके ने वक्रोक्ति (चिदरधतापूणं ्रभिव्यजना-शंली) को ही काव्य का प्रण माना है । मम्पट ने दोपरहित, ব্যানালী, भ्रलकारःयुक्त तथा कभी-कमी ्रल कार-रहित शन्दायेमयी रचना फो कान्य कहा है* । विश्वनाथ के मत में रसात्मक वाक्य ही कान्य है । जगन्ताथने रमणीय श्रयं के प्रति- पादक शब्द को काव्य माता है * । इसी प्रकार विविध विद्वानों ने बहुत सी और परिभापाणएं भी दी है *। उपयुक्त काव्य-लक्षणो की सूक्ष्म आलोचना यहाँ श्रपेक्षित नही। इन परिभाषाओ्रो के आधार पर यह निश्चित होता है कि सस्कृत में काव्य-तत्त्वों का विवेचन करने वाल प्राच्यो के मुख्यत पाँच सम्प्रदाय (वर्ग) थे--(१) रस-सम्प्रदाय, (२) अलकार- १. रोतिरात्मा फाव्यस्य 1 --वासंन, ्रलकार-सुत्र २ कान्यस्यात्मा ध्वनि. 1 --श्रानन्दवघंन, ध्वन्यालोक ३ वक्रो. काव्यजीवितम्‌ । -- कन्तक, बक्रोक्ति-जोवित ४ तददोषौ शन्दायौ सगुणावनलंकृती पुन. श्वापि । --मस्मट, कान्य-प्रकाश ५ गार्य रसातसफ काव्यस्‌ । 4 --विङवनाय, साहित्यदर्पण ६ रमणीयायप्रतिपादक शब्द. काव्यस्‌ । “जगन्नाथ, रसगगाघर ७ (ক্ষ) संक्षेपाद्वाक्यमिष्टायेव्यवकच्छिन्ना पदावली, फाव्यं स्फुरदलंकारं गुणवहौष-वजितम्‌ । । -अग्निपुराण (ख) नन्‌ शब्दाथों काव्यम्‌-- -+रुद्रट, काव्यालकार (य) विर्देर्दि गुणवत्‌काव्यसलंकारेरलकुतस्‌ । रसान्वितं 1 ---मोज, सरस्वती-कठामरण (घ) प्रदोषो सगुणौ सालकारौ च ज्ञव्दायोौ फास्यम्‌ ) 5हेमचन्द्र, काव्यानुशासन (5) निर्देषा लक्षणवती सरीतिर्गण-भूषिता । सालफार-रसानेकतृत्तिवाक्कराव्यनामभार 11 -“अयदेद, चन्द्रालोक




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