जमनालालजी की डायरी भाग -1 | Jamanalal Ji Ki Dayari Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
255
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पटना कौनग, उसका जलो करने है, लेविन गया बातचीत हुई.
শন অনা अभिप्राय जया ঘা আক আগ হব बया जरने का सोचा है,
इत्यादि गए भी नहीं लिये । सिर्पे औई घटता आदि ही जिराते हैं। मैंने
सटा ष्मो सरभो यामिदं किणो है । मेरे लिए उनहा उपयोग
अधिव-गे-अधिक है । दूगरो वे लिए बुछ भी नही है। विस दिन मैं किनमे
दिला, विस विषय पर सैरा लिएा, महर्व का ঘঙ্গ ধিন লিলা জাহি আযা-
লা লিঙ্গ ही उगसे आ आता है । बौन-गी चीझ कब घटी, इगवी जानरारी
मेरी वागरी मे से जद चाहे मिल जाती है। अगर मैं आत्मक्या लिराने बेठ
तो सुभे मेरी वासरी से गाफी मदद मिल सदी है। लेकिन यह शब्द
इतना आत्मनेषदी होसा है कि दूसरो बे लिए वह कुछ काम का नही होता ।
उसमे रस भी पैदा नहीं हो सकता ।
महात्मा गाधी भी इसी सरह की वासरियां लिखते थे। उसमे तो
बहुत ही कम शब्दों में अत्यन्त जरूरी बातों का ही जिक्र होता है। अमुक
दिन गाधी जी कौन-से दाहर में थे, किससे मिले और उस दिन क्या किया,
इसवा ज़रा-सा जिक्र ही उसमे मिलता है। गाधीजी की जीवनी लिखने
वालो के लिए ऐसी वासरी हमेशा काम को चीज़ है सही, लेकिन गाधीजो
की ओर से उसमे बुछ भी नही मिला ।
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