नंगा रुक्ख | Nanga Rukkh

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Nanga Rukkh by ओ. पी. शर्मा - O. P. Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जा रहे थे। सबको मोखिक पाठ मिला है, याद करने के लिए। सब शोर मचाते हुए उप्ते याद कर रहे है। सूरज के चढने के साथ साथ वे पाठ याद करते हैं पर एक भी अक्षर उनको याद नही हो पाता । कितने ही अरसे से अभ्यास के नाम पर यह नाटक चल रहा है। कभी-कभी वह सोचता था--रात वी चरमप्तीमा होती है, दित का अत होता है, दरिया का भत होता है, पहाडो की चढाई का अत होता है यहा तक कि आदमी का अत होता है, पर इस नाटक इष अभ्यास का कोई अत नहीं। पात्र बढते जा रहे हैं, पाठ लम्पे होते जा रहे हैं अभ्यास कठिन होते जा रहे हैं, और अत का कोई सक्रेत कही विसी को नही लिखाई दिया । एक कमरे में धुआ--अपने अखण्ड साम्राज्य के साथ विराजमान था । एक घूढी औरत अधसूखी लकडियो को फूक मार-मारकर जलाने का यत्न कर रही थी। एक बडे परिवतन के वाद भी अतेक घरोम अधसूखी लकडियो का ईंधन ही प्रयोग क्या जाता है। जब यह गौला ईधन न जले तो उत्ते जलाने वाला स्वय जलने लगता है । “तयारी है २” उसके पडोसी ने आते ही पूछा। उसके साथ आज एक लडकी थी । कैसी तैयारी ? कहा की तैयारी ? जो तैयारी सुबह शुरू हो मौर सुरज के मस्त होते होते समाप्त हो जाए उसे तथारी नही कहते-- उसे तो फादा कहत॑ हैं ।/ उसका पडोसी ज़रा हसा---“आदमी फदा तो अपने मल मे डाल लेता है पर मरते दम तक इस फदे से छुटकारा नही पा सकता 1” “तुम कहा जा रह हो २” उसने पूछा । “হুম लडवी को लेकर जा रहा हू ।” पडोसी ने कहा 1 *क्हा जा रह हा इप्त लडव्री को लेक्र ? यह कौन है ? * “इमे भी तस्वोर देखनी है--वदी वल वाली तस्वीर 1 লগা হজ / 17




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