भारतीय काव्य - शास्त्र की भूमिका भाग 2 | Bharatiya Kavya Shastra Ki Bhumika Bhag 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन-बृत्त ] झाचाप॑ं दामन (द इस प्रकार यामन का भाविभावि काल ७४५० ई० भोर ८५० ई० के आस पा्त द०० ई० के सगभग निर्पारित किया ना सफता है । इसके प्रतिरिक्त यामन के जीवन-युत्त के यिपय में और कोई विशेष तथ्य उपसम्प महीं हैं । घनके पन्थ के अप्ययन से यहूं दिदित होता है कि वे काव्य, काब्य-शारम, दण्डनीसिं, व्याकरण आदि के निप्णात परिडत थे--उनरे स्वभाव में झ्ाभिजात्य भोर पिंघार में थी। झभिनवगुप्त ने काव्यालंफारसूम में उद्त गाझेपार्लकार के उदाहरणों को यामन को भपनी हो रचना माना है--जिससे म्रतोत होता है कि इन्होंने कदाचित्‌ थोड़ी बहुत काव्य-रचना भी को थी 1 ही ग्रस्प का एक ही प्रन्य उपलब्ध है फाब्या- संकारतूत्र । इसके तीन भंग हैं सूप्र, युत्ति धौर उदाहरण । जसा फि पं० मलदेव उपाध्याय ने निर्देश किया है सुघ्र-दंसो में लिखा हुमा काव्य-दास्प्र का कदाचितू यह एकमाध प्रस्य है । भरत से तेकर भन्तिम भाचायों तक राभी मे कारिका झोर युति को इसी ही भपनाई है । इस प्रन्य का बृत्ति भाग भी दामन का ही है जिसे उन्होंने कविप्रिया नाम दिया है: प्रसम्य परमं ज्योतिरवामिनेन कविप्रिया ! जि स्वेपां वृ्तिविधोयति ॥। का उपर्युक्त मंगल-दलोक यृत्ति के विषय में कोई सन्वेह ही नहीं छोड़ता । इसके भतिरिक्त प्रतिहारेन्दुराज, घनिनयगुप्त झादि सभी ने यृत्ति को थामम फो हो रघना माना है । इसीलिए प्रत्य का नाम भी फाय्यालंकारसुधवूतति हो भ्रपिक प्रसिद्ध है में पाँच हैं --और ये श्धिकरण श्ध्यायों में विभक्त हैं । पहले झधिकरण में वामन ने काव्य को परिभाषा, फाब्य के श्ंग, प्रयोजन, फाब्य की आत्मा--रोति, काव्य-सहायक ध्र्यात्‌ काव्यहेतुक, झधिकारो, काव्य के रूप ध्ादि मूलभूत सिद्धार्तों का वियेचन किया है । दूसरे में 'दोप-दर्शन” है जिसके भ्रस्तगत पद, घावय तथा यावयार्थ के दोपों का विवेचन है । तीसरा श्रधिकरण है जिसमें सबसे पहले दो वामन ने युख झौर झलंकार का भेव स्पष्ट किया है-- तवुपरान्त शब्द-्युणा और भर्थ-गुण का विस्तृत विवेचन है । इस झधिकरण में वामन ने शब्द-गुणा भौर भ्र्य-गुण का पार्थक्य प्रतिपादित करते हुए , दस , दाव्दन्गुण भौर




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