वेदान्तपुष्पांजलि | Vedantpushpanjali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
642
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्यापिकापरिचय शद
श्रीयक्तषो अऋग्थकन्नी मद्देदया की अधिक ऊझौर शुभ इच्छा है कि
भारतचपी य इस के पछन पाटन से रूस उठावचें
तिवेदक--
प° स्द्रदत्त साम्ना
< कार्तिक संवत् १६५८ स्थान जयपुर
व्यध्यापिका-परिचय
श्रीमती यी चमी अध्यापिका का नाम श्री गङ्कदेवी जी है।
अप गोोड़न्राद्यण-कखकमलिनी है । इन का जन्मदिन से भाज
तक सम्पूर्ण काल पतचित्र धांस्मिक अज्ञुछान.ही में बीत रहा ই
घुलते; फिरते, सेतते, जागते में यद्धि यह अपने सताममे किसी के
देखतो हें ते। चढ़ सच्चिरानन्द परमात्मा है | पूर्व, पश्चिम, उत्तर,
दश्िणण, ऊपर, नीचे, भीत्तर, खादर सलम्पूण जगत्त् क्ह्ममय इन्हें সলঃল
हिता है! ब्रह्म से : श्चणमान्न भ यड अङग नदीं दतीं {इन की में
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जय ओर गड्जदेवी जी ५, ७ चर्ष की हुईं ठय से हो विद्या में इन
सी रूचि अधिक पाई गई | জর, নত और संस्कृत के छोटे २
खेाच्छ ट स्मरण कर छिया करतों यों । अपनो कन्या की. तीष्टण
सुद्धि और शारूत्र की शोर भ्क कग्च देख संस्कुत और हिन्दी आय्य
दन स्वयं ग्रिता पढ़ाने ख्ये | भापा में थोड़े ढी दिनों में अतिशप '
निपुण दा ग् 1 लंरूकुत का अध्ययन सी चराचर ,श्री गङ्कदेचीजी
करसी' रहों ।
« ऊथ शवशुरकुछ में जाई জল भी अपने सकल ग्र॒हकर्म्म के
ऋराके अचवक्राश पाने पर चेद्रान्तसस्थन्धों अन्थ पढ़ा करती তরী ।
'चेदान्तशास्त्र ने इन के मन के अंपनी ओर बहुत आकूए किया॥
ख्वाध्यप्य सैं यद सखद सोनः हैं | आअग्निद्दाण्न, स्वन्ध्येपासनादि
निद्यक्छ्मं नियमपूर्वकं देने, खगे । यथपि ब्राह्मणं के गड पर सदा
हिल्य नैमिस्तिक श्त्यादि कर्म हेते ही -र्दते दै तथापि श्रीमती जे
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