गुप्त भारत की खोज | Gupt Bharat Ki Khoj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३) उठाई है वे एकदम वहसो ओर संशयात्मा बन वैरे है । इसका स्वाभाविक परिणाम यह हुआ है कि इस विषय का सथा और पूरा ज्ञान रखने वाले भारतीय ऐसे अंग्रेज लेखकों से इन विषयों की सच्ची च्चा ही नदीं करना चाहते । अतः इस तत्व के पहचानने के कई साधन ऐसे लेखकों के लिए असाध्य ही रहे । यदि यूरो- पोय लेखक योगियों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त भी कर पाये हैं. तो वह पूर्ण नहीं हुई है; ओर सच्चे योगियों तक तो उनकी पहुँच निश्चय ही नहीं हुई है। योगियों को जन्म देने वाले देश भारतवर्ष में हो सब्े योगो अब डेंगलियों पर गिने जा सकते हैं। उनकी संख्या अब नहीं के बराबर हो सममनी चाहिये। वे अपनी सिद्धियों को जनसाधारण से गोपनीय रखना पसन्द करते हैं ओर जान-बूक कर साधारण लोगों के सामने अपने को मूढ़ सिद्ध करना चाहते हैं | चीन, तिब्बत या भारत में यदि कभी कोई पश्चिमी यात्री की भूले-भटके इन योगियों तक पहुँच हो जाती है तो वे बड़ी खूबी से अपने को अनाड़ी के रूप में प्रकट करते हें ओर उनको असलियत की उन गोरे मुसाफिरों को टोह तक नहीं मित्रती। पता नहीं उनके इस प्रकार के आचरण का कारण क्‍या है; शायद वे “जानन्नपि हि मेधावी जड़वछोके आचरेत्‌ वाली सूक्ति को ठीक मानते हैं । बे वो दूरबर्ती मिजन स्थानों में रहने वाले संसार से विरक्त जीव हैं। किसी भी नये ओर अपरिबित व्यक्ति से भेंट होने पर वे उसको अपनी चास्तविकता से परिचित नदीं होने देते) कम से कम आग- न्तुक का गहरा परिचय न होने तक बे उससे सुल कर बातें नहीं करते | इन्हों कारणों से पश्चिम के लोग योगियों के अनूठे जीवन के बारे में बहुत कम्त लिख पाये हैं, और जो कुछ अब तक लिखा मिलता भौ है बह अस्पष्ट ओर अपूर्ण है। कई भारतीय लेखकों




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