त्रासदियाँ | Trasadian

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Trasadian by नरेन्द्र कोहली - Narendra kohli

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जुलाई मे कालेज खुलेंगे तो हम जाया करेंगे । ग्स्कूल में पढावें हैं । उनको पत्नी ने उ हू अपनी कुहनी से टहोका दिया । पता नही साहब कैसी-कैसी नौकरिया हैं दुनिया में । उन्होने बडी विवश मुद्रा मे कहा पहले एक साहब रहते थे । ऐसे ही आप लोगो की तरहू घर पर पडे रहते थे और कहते थे कि वे किसी रियासत वे राज- कुमार हैं। भन्त मे दस महीने का किराया ले भागे। हम नही भागेंगे । मैंने उहे आश्वासन दिया भव भाए हैं तो यही रहेगे और आपका किराया नियमित देंगे। वे आश्वस्त हो गए पर उनकी पत्नी आश्वस्त नही हुई । इसका पता हमे तव चला जब उन्होंने सुबह शाम हमारे घर मे भाकना शुरू किया । एक दिन वे मेरी पत्नी से पूछ भी बैठी आपकी शादी हो गई वहनजी ? मेरी पत्नी का भौचक मुद्रा मे मुह खुल गया वया कह रही हैं आप ? बुरा न मानना वे क्षमा थाचना के ढग से बोली हम भी गृहस्थ हैं। बाल बच्चे वाले हैं । दुनिया देखी है पर तुम जैसी ब्याहता तो देखी ह्दी नही 1 मेरी पत्नी का चेहरा उतर गया । उसका हाथ अपने माथे पर चला गया। बहू न माग मे सिंदूर डालती है और न माथे पर बिंदी लगाती है । उसकी मा भौर मेरी सास कई बार उसे ठोक भी चुकी है। फिर उसकी दष्टि अपनी कलाइया पर गई जहा चूडिया तो टूर आज उसकी घड़ी भी नहीं थी जी. हा | मकान मालिक की पत्नी बोली पहले वो राजकुमार और राजकुमारी यहा रहे थे तो रोज़ सुबह शाम लें थे। पडोस मं शर्मा की बहू ब्याही आई तो बह ले है । इघर ख ना की पत्नी रोज़ पिरटें है । तुम लोग न लडो हो न मार पीट ब्याह हो गया बहन जी तुम्हारा आखिर घर गिरिस्ती की बात है। जहा चार बतन हों आपस म टकराव ही हैं। तुम्हारी तो आवाज़ भी कभी हमारेकान-म नही पडी। कही भाग- सी देश ज्ञासदी.एक-घर बीएड ९९ बी




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