चिन्तन - अनुचिन्तन | Chintan Anuchintan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
145
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कवि रवीन्द्र की सौन्दयं शास्त्रीय हृष्टि 9
के, शिव के दर्शन करने से जो आनन्दानुभूति उसे होती है, उसे कला या साहित्य
में अभिव्यक्त करता है। वस्तुतः अपने आप को वेज्ञानिक तथा बुद्धिवादी कह कर
झूठे गवे का अनुभव करने वाले ही सत्य से दूर हैं, कारण कि सत्य को जानने
की उनकी पद्धति ही गलत है । जो एक है, अखण्ड है, उसे वे विश्लेषण के द्वारा
जानने की चेष्टा करते हैं । उनकी चेष्टा के सफन होने में सन्देह ही सन्देह है)
आकाश के नक्षत्र चल हैं अथवा अचल ? दूर से देखने पर वे अचल हैं
निकट से देखने पर चल हैं । नक्षत्रों के सम्ब्रन्ध में ये दोनों तथ्य समान रूप से জন্ী
ই । 'ভুহ' तथा 'निकट' के तथ्य प्रस्पर भिन्न हैं । हैं वे तथ्य ही | ये दोनों तथ्य,
जिस एक वस्तु से सम्बन्ध रखते हैं, जिसके स्वामित्व को स्वीकार करते हैं, वही सत्य
है। इस सत्य के सम्बन्ध में ईबोपनिषद् का तत्वदर्शी कहता है वह चल है, वह
अचल, है, वह दूर है, वह निकट है 1
कोरे विज्ञान के विश्वासी को इस उक्क्ति में कोई सार नहीं दिखाई देता ।
वहु इसे कान्ट् डिक्शन इन टम्सं' कहु कर अलग कर देता है। पर देखा जाय तो
सृष्टि के रहस्य में एक ऐसा बिन्दु भी है जहाँ अन्तविरोध मिल जाते हैं, जहाँ ससीम
अपनी सीमाओं को व्यापक बनाते बनाते असीम बन जाता है और असीम अपनी
परिधि का संकोच करते करते ससीम बन जाता है | यदि उस बिन्दु को भुला दिया
जाय तो वस्तुएं अपनी यथाथेता से हाथ धो बँठती हैं । यदि हम लोहे के एक ट्रुकढ़े
को एक बहुत तढ़े अणुवीक्षण यन्त्र के नीचे देखे तो हमें केवल उड़ते हुए परमाणु-अंश
ही दिखाई देंगे, लोहे का अस्तित्व मिट जायेगा | दही के साथ भी यदि यही किया
जाय तो असंख्य वेक्टीरिया के जीवाणु ही, देखने को मिलेंगे, दही देखने को न मिलेगा।
यह भी हो सकता है कि ऐसा करने के बाद दही खाने की हमारी रुचि भी समाप्त
हो जाय । लोहा इसलिये लोहा है और दही इसलिये दही है कि असीम ने ससीम
रूप धारण कर रखा है। यही अन्तविरोधों के मिलन का बिन्दु है ।
आकाश (स्पेस) के सम्बन्ध में जो सत्य है, वह काल (टाइम) के सम्बन्ध में
भी है। कुत्ता जिस गन्ध को ग्रहण कर सकता है उसे मनुष्य नहीं कर सकता ।
भूकम्प की पूवैसूचक लहरों को बहुत से पक्षी ग्रहण कर लेते हैं. मनुष्य नहीं कर
सकता । उनका समय और हमारा समय एक सा नहीं होता । हमारा स्वप्नावस्था
और जाग्रदवस्था का समय भी भिन्न होता है । स्वप्न में हम अनेक वर्षों की घटनायें
कुछ ही मिनटों में देख जाते हैं। यदि हम अपने समय के केन्न्द्र-बिन्दु को इच्छानुकू-
लित कर सकें तो एक निलेर को अचल और एक वन को चल रूप में देख सकेंगे ।
रवीन्द्र की मान्यता है कि वस्तुओं का रहस्य उनकी गतिशीलता में है ভন
पुस्तक पढ़ते हैं । पुस्तक में कई अध्याय होते हैँ | वे समस्त अध्याय गतिशील होकर
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