ब्रह्मचर्य - दर्शन | Brahmachary Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आत्म-शोधन : पृथक हो जाती है ओर अपने असली स्वभाव में आ जाती है। इस प्रकार पहले भेद्विज्ञान होता है ओर फिर भेद हो जाता है। इस प्रकार पहली चीज़ है भेदविज्ञान पा लेना। জনসন यह्‌ सममः लेना है कि जड़ और चेतन एक नहीं है। दोनों को अलग-अलग सममतना है, अलग-अलग करने का प्रयत्न करना है ! ऐसा करने से एक दिन जब चौदहवें गुणस्थान की स्थिति भी पार हो जाती है तो भेद हो जाता है। जड़, जड़ की जगह और चेतन, चेतन की जगह पहुँच जाता है। जो गुण-घर्म आत्मा के अपने है, वही मात्र आत्मा मे शेष रह जाते है । यह जेवधर्म का आध्यात्मिक सन्देश है। उसने मनुष्य को उच्च जीवन के लिए वल दिया है, प्रेरणा दी है। अभिप्राय यह है कि स्वभाव को विभाव श्रौर विभाव को स्वभाव नदी सम लेना वादिए । भाज तक यही भू होती आई है कि स्वभाव की विभाव और विभाव को स्वभाव सममः लिया गया है। दो दशन दोनों किनारों पर खड़े हो गये हैं और उनमें से एक कहता है कि चाहे जितनी शुद्धि करो, आत्मा तो शुद्ध होने वाला हे नहीं ! मै दिल्ली मे था। वहू गोधी सदान में एक बडे दार्शनिक व्याख्यान कर रहे थे। उन्होने कहा, पतन होना मनुष्य का स्वभाव है। गिर जाता, भ्रष्ट होता, विषयों : की ओर जाना और वासताओं की ओर जाना आत्मा का स्वभाव है! और फिर




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