अवतरणिका | Awtarnika

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Awtarnika by इश्वरीप्रसाद शर्मा - Ishwari Prasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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চি % किसी से भो कतका्थ नहीं हो सकी । भ्राज षष्टं नै दसौ उदेश्य के साधं के लिए दया उद्योग - निकाला है। यह उद्योग कैसे सफल होगा, वच्द कस से जाना जायगां। उन काद्य अब को यार व्यथे नहीं जायगा, यहो सोच पञ्चा आजं इतनौ प्रसन्ना हे । | पेश्म्न बहुत देर तक अन्यसनस्क़ धो । दस ससय पूछ ব্রতী, ^ तुम सप्तग्रास में और कितने दिन तक रोगौ? आगरे कौ सब बातों की याद कर देखो, जाप किस तरह आरास से वहां पर थीं। और यहां क्या आरास ई! | पद्मावती ने तनिक इंस कर छत्तर दिया , ^ पेन ! जीवन के षाक ` दिन परव सप्मग्रास हो सें विताऊ'गो। यहां में হু घड़ी जो इख पाती हूं, आगरे में घादशाद् के सघल रों बहुतेरे नौकर-नौकरानियों थे घिरो रहने प्र भी, अगाघ सददि के बोच, उस सुख को एक कणिका सौ नहीं पा सकती । पेश्मन ! इन्द्रिय-सुख भोग को जहां तक चरिता्थंता संसव है सो सथ॒ सें पा चुको भरव कुछ बाको नहीं है। पाप सागर में जितनी ग्रो डुव्नौ लमाने पर उस का तक्त खशं किया जा सकता है--में उतनी छो गइहरो छुव्बो लगा चुको इूं। अब इस पाप জা प्रायचित्त नदीं डे! अब इस पाप से निस्तार “पाने का कोई उपाय नहीं है। पेश्मन | तुम ससभातो नहीं सेरे हदय में एक वार सेकड़ों बिच्छ डंक सारते हैं। अनुताप को आग से सेरा हदय जल रहा है। जो होना था सो हो गया--अब. मैं शान्ति को सिखारिनो हूं। अविश्वान्त पाप मेरे सन, बुद्धि, देह झीर प्राण सभो असार हो रहे हैं४,सें उन को फिर ठोक रास्ते पर लाना चाइती. हूं तुस नहीं जानती खासी कसा परस पदाथ है; से भी इतने दिन-तक नहीं जानती थो। द्रिद्न पति को चरण-सेवा करना ए्वोपति बादशाह জী इ्रन्द्रिय-धत्ति को निद्वत्ति का उपकरण मात ने कौ पिच्चा कितना अच्छा अच्छा '. है, पेश्मन | सो में ले अब समझा है। श्रवज्ञा-कुल-सूषण सतोत्व -रत्न करे गछुहे में फेंक कर भूलोक-दुंस सम्पत्तिसुख का- सन्सीग करने को अपेक्षा उक्त रत्न को द्वदय में घारण कर कंगाखिन के वेश से कुटो में वास करना जो




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