जैन शिला लेख संग्रह भाग - 2 | Jain Shila Lekha Sangrah Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
527
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० जन-किरखालेख-संग्रह
` [ ५५] सुविहिव श्रम्णोकि निमित्त शाख्त-नेन्रके धारकों, ज्ञानियों और
तपोयलसे पुणे ऋषियोंके लिये ( उसके द्वारा) एक संधायन ( एकत्र
डोनेका भवन ) बनाया गया । अहेतक्षी समाधि ( निषधा) के निकट,
प्रहाड़की ढालपर, बहुत योजनोंसे छाये हुए, और सुन्दर खानोंसे निका-
छे हुए पत्थरोंसे, अपनी सिंहप्रस्थी रानी 'शृष्टी” के निमिश षिधामागार--
[ ४६] ओर उसने पाटालिकाओमें रज्ञ-जटित सम्भोंको पचचदत्तर राख
पणो ( मुद्राओं ) के व्ययसे प्रतिष्ठापित किया । वहै ( इस समय ) मुरिय
कालके १६४ यें वर्षको पूर्ण करता है।
वह क्षेमराज, वद्धराज, भिक्षराज ओर घर्मराज है ओर कस्याणको
देखता रा है, सुनता रहा है ओर अनुभव करता रहा है ।
[ १७ ] गुणविरोष-कुशङ, सवे मतोकी पूजा ( सन्मान ) करनेवारा,
सवे देवारयोंका संस्कार करानेवाछा, जिसके रथ ओर जिसको सेनाको
कमी कोई रोक न सका, जिसका चक्र (सेना) घक्रधुर ( सेना-पति ) कै
द्वारा सुरक्षित रहता है, जिसका चक्र प्रवृत्त हे ओर जो राजर्पिवंश-कुछमें
उत्पन्न हुआ है, ऐसा मद्दाविजयी राजा श्रीखारवेल है ।
इस शिछालेखकी प्रसिद्ध घटनाओंका तिथिपत्र--
थी. सी. ( ईसाके पूर्व )
9 १४६० ( लगभग ) ... केतुभव्
७ ०४६९० ( ऊगभग ) ... कलिंगमें नन््द्शास्रन
» [२३० ... अश्योककी रूत्यु ]
» २२० ( छगभग ) .-. कालिंगके तृतीय-रोजवेश-
का स्थापन]
ॐ ¶१७ अ »** खारवेखका जन्म
ऋ { #द८ ०८ ,.. मोय॑वंशका अन्त ओर
पुष्यमित्रका राज्य प्राप्त करना ]
+ शरः ५०० ५ खारबेरुका युवराज होना
ॐ [ १८० ( कगमग .** सावकर्णि प्रथमका राज्य-
प्रारम्भ ]
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