खोजकी पगड़न्डियां | Khoj Ki Pagadandiyan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Khoj Ki Pagadandiyan by मुनि कान्तिसागर - Muni Kantisagar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मुनि कान्तिसागर - Muni Kantisagar

Add Infomation AboutMuni Kantisagar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
आत्म-वक्तव्य १३ मानसिक विकासपर और कलापरक दृष्टि-दानमें उपर्युक्त विद्वतृत्रिपुटिने जो श्रम किया है, फलस्वरूप 'खण्डहरोंका वैभव” एवं प्रस्तुत पुस्तक है । » खोजकी पगडण्डियाँ- तीन भागोंमें विभकत हैं--ललितकला, लिपि और भौगोलिक यात्रा। तीनों विभाग एक ही विषयपर. केन्द्रित हैं । जितना बौद्धचित्रककापर अद्यावधि प्रकाश डाला गया है, उतना जैन चित्रकलापर नहीं । हिन्दीमें जैन-चित्रकलापर प्रकाश डालनेवाली सामग्री अत्यन्त सीमित हैं। ललछितकलछाके समस्त निबन्धोंपर मुझे कुछ नहीं कहना, किन्तु जहाँ तक सम्भव हो सका और उपलब्ध साधन मुझे प्राप्त हो सके, उनका उपयोग करनेका प्रयास किया गया है। भारतीय भित्ति- चित्र ओर मुरार राजपूत पूर्वं विकसित चित्रकछाकी मूल्यवान सामग्री जैना- श्रित ग्रंथस्थ वाङ्मयसें ही सुरक्षित रह्‌ सकी हैं । हिन्दू धर्माश्वित चित्रकला- पर एक निबन्ध इसमें जाना आवश्यक था, किन्तु ठीक समयपर तैयार न हो सकनेके कारण न जा सका, इसका खेंद है। इस विभागकी दूसरी मुख्य अपूर्णता चित्रोंका न होना है । मेरे जैसा भिक्षु उनको कहाँ जुटाता फिरता ? जीवन सतत पर्यटनशील रहनेके कारण कलाविषयक नवीन सामग्री उप- लब्ध होती ही रहती है । इन पंक्तियोंके लिखते समय अनायास मुझे एक ऐसी जैनाश्रित चित्रकलाकृति श्रीयुत चाँदमलजी सोगानी द्वारा प्राप्त हुई जिसके उल्लेखका लोभ संवरण नहीं कर सकता। मेरा तात्पर्य सचित्र भक्तामरस्तोत्रसे है! योतो इसकी दर्जनों सचित्र प्रतिर्यां मेरे अवलोकन- में आई हैं पर इस प्रतिका महत्त्व जितना धामिक दृष्टिसे है, उससे कहीं अधिक हिन्दी भाषाविज्ञान और चित्रकछाकी दृष्टिसि है। विशिष्ट प्रकारके भावोंका चित्र द्वारा प्रकाशन आजके मनोवैज्ञानिकोंकी देन मानी जाती ह । यह्‌ कृति उसका अपवाद हँ । प्रत्येक कान्यके प्रत्येक वाक्यका इतना सुन्दर ओर सफल अंकन अन्यत्र दायद न मिले। कलाकारने एक एक भावमूलक वाक्यका स्वतंत्र चित्र खींचकर तात्काछिक मनोविज्ञानका सुन्दर स्वरूप उपस्थित किया है। मुग्र चित्रकङाकी यह्‌ उक्कृष्टतम कलाकृति असावधानीका ऐसा शिकार बनी है कि लेखन-प्रशस्ति व बहु-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now