कालजयी प्रेम कथाएँ | Kaljai Prem Kathayen
श्रेणी : कहानियाँ / Stories, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.83 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जो लिखा नहीं जाता
हर आदमी अपने इतिहास के साथ कितना अकेला है--बार-बार.. ध्यान में
आती है। और इसी बात के साथ याद आती है सुदर्शना | उसी ने तो कहा था
उस दिन, 'चन्दर 1 ये यादे भी हमे कही नही पहुँचाती --कुछ ऐसा है मेरे पास,
जो मै किसी से नहीं कह सकती, इसीलिए तो इतनी अकेली हूँ ।'
मुझसे नहीं कह सकती ?' मैने पूछा था |
'झूठ बोलने से खुश हो सको, तो जितना कहो, बताती जाऊँ। लेकिन
सच यही है कि कोई भी किसी से सब-कुछ नहीं बता सकता | हर जन के पास
कुछ ऐसा है जो कभी कहा नहीं जाता, किसी से नहीं कहा जा सकता---
कहते-कहते उसकी आँखों मे परछाइयॉ-सी तैर आयी थी और वह खिडकी के
बाहर उडती धूल के बगूलो को देखती रह गई थी ।
मै चुप बैठा रहा था | स्थिति भी बडी अजीब थी। सारा घर उदासी की
परतो मे लिपटा हुआ था। जिस कमरे मे हम बैठे थे, उसी के बगल वाले कमरे
मे टिके हुए थे सुदर्शना के पति-महेन्द्र ।
सुबह चाय पर हम सब इकट्ठे हुए थे, तो महेन्द्र चुप थे। वही क्या,
सभी चुप थे। चुप रहकर अपने भावो को छिपा सकने का मौका भी था। अगर
सुदर्शना के पित्ता की मृत्यु-जैसी दुखद घटना न हुई होती, तो शायद मैं भी
नहीं आता और न उसके पति महेन्द्र ही आते। अजीब बेबसी मे लिपटे बैठे थे
हम । हम तीनो, जो एक-दूसरे को बहुत अच्छी तरहे पहचानते थे, भीतर-ही-भीतर
एक-दूसरे से नफरत करते थे। साथ ही कही-न-कही पर इतने मजबूर थे कि
आपस मे खुलकर बात भी नहीं कर पाते थे |
इन पाँच सालो मे, जब सुदर्शना अपने पत्ति को छोडकर चली आयी
थी, मै महेन्द्र से नहीं मिला था। मिलने का सवाल भी नहीं था। पर महेन्द्र को
हमेशा यही शक रहा कि सुदर्शना का इस तरह ते जाना सिर्फ मेरे कारण
हुआ
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