जनक और याज्ञवल्क्य | Janak Aur Yagyvalkya

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
64
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री शंकराचार्य - Shri Shankaracharya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ছি8০ ১8, 84০৪৬৪৫৪৬৪০ 8:3-এ,৫. শি हे ही 6
| (१५ )
जीवात्मा और परमात्माके स्वरूपमें कोई मेद नदय |
है। यद्यपि संसारदशामें आत्मा हृपेशोकसम्पन्त क्लेश-
तापपीडित और संसाररूप फांसोमें बँधाहुआसा प्रतीत
होतां,है, परन्तु वास्तवमें आत्मा विषयोंसे विल्ग है| ,
जीवको जाग्रत्, स्वम श्चौर ुपुम्ति अवस्थाओंको हम
नित्य ही देखते हैं । इन अचपस्थाओं पर ध्यान दे कर
विचार करनेसे आत्मोके चात्तविक स्थवरूपका निश्चय:
किया जा सकता है, इस ही अभिप्रायसे उपनिषदोंस
जहां तहां इन तीनों अवस्थाओंका वर्णन किया है, अतः
हम मी यहाँ इस विषयमें कुछ आलोचना करना उचित £
खममते दै । जायत् अवस्था ही जीव्रकी संखार-्वस्था
कहलाती है, इस य वस्थामें इन्दियोके सामने विश्वा । '
परदा उचघड़ा रहता है और शब्द् स्पशं रूप रस |
आदि के साथ संबन्ध होनेके कारण आत्मा इन स्थुल
विषयों को लेकर क्रौड़ा किया करता है, भात्मा
विषये सर्वधा ठका ह्वा और सर्वधा विषयोंके
-वकश्ीमूत रहता दै । ये स्थूल निषय इन्द्रियोंके
সাগর क्रियाको खड़ी करके आत्मामें कितने ही अनु-
प्रयशो उस्पन्न कर देते है, इस दी रीतिसे विषथका
प्रत्यक्ष होता है, परन्तु इन अवस्थाओंमं मी आत्मा
विषभोंसे विलग रहता है यह घांत अवश्य ही समझ
में आजाती हैं| देखो-इन्द्रियके सामने एक विषय
झाजाने पर इन्द्रियमें क्रियां होने लगती है, उससे
» 5 ही इन्द्रियोंडी मिन्न २ क्रियाएँ जागजाती- हैं। इन
। | विशेष २ क्रियाओँमें जबतक मनका संयोग नहीं होता,
तबतक यह कुछ मी समझें नहीं:आता, कि-ये कहाँसे
| झागयीं किसकी कियाएँ हैं और इनका' अचुम्तव
~ न ताद का ऊ क ব্ল টি
क्के
१
User Reviews
No Reviews | Add Yours...