आत्म - समर्पण | Aatm - Samarpan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आत्म-समपेण
'राज़ा उम्रसेन की लाइली राजुलज अपने भावी पति नेभि-
कुमार के चिन्तन मे रत थी। अपने पति का कल्पित सुन्दर
झौर सहृदय चित्र देखकर नारी के मुख पर जो प्रसन्नता होती
है, राजुल उसीका अनुभव कर रही थी। नारीसुलभ लखज्जा
यद्यपि उसके आन्तरिक भावों के प्रद्शव मे बाधक थी फिर भी
उसका अनुराग छुलक रहा थ। | अनेक चेष्टा करने पर भी वह्
उसे छिपा न सकी । औत्सुक्य, उमंग और नवीन अभिलाषाओं
की त्रिवेणी में स्नात उसका शरीर पुलकित हो रहा था ।
दूसरी ओर सद्देज्षियों के बीच ठठोलियां चत्न रहीं के )
बेचारी राजुल एक ओर और शेष संडली दूसरी ओर | नै
राजु के भयुराग की कथा कह कर उसे रि्चाने को चेष्टा करती
तो कोई नेमिकुमार के शौय और पराक्रम की गाथा गाकर
राज़ुल का हृदय नापने का प्रयत्त करती । भावी पत्ति की गौरच-
गाथा सुन सुन राजुल का सन खिल उठता था ।
यह क्रम चल ही रहा था कि अचानक हांफते हांफते एक
दासी भ्राकर चिल्ला “राजकुमारी...” । शब्द उध्चके ओठों से
निकलते ही न थे, बह विकट रूष से कांप री थी श्रौर ऑँसुओं
की धार उसकी दोनो खो से बह रदी थौ । ।
“चन्दन !” राजकुमारी ने आश्वय से उसकी ओर देखा
क्यों ? क्या बात हुंई ? उत्सुकता से ' दसने प्रश्न किया ।
सद्देलियों की मंडली चन्दन को घेर कर खदु दो गह । सभी
स्तन्ध थीं, आश्चर्येचकित थीं। चन्दन जो दस्समावार ला
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