धूमशिखा | Dhoomshikha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(४ )
चाहती हूँ री। चह गीत बन्द ही नहीं होता । कान फाड़े दे
रहा है । न-जाने कैसे मूर्ख हैं. लोग। जबरदस्ती लोगों के
कानों में बिना चाहें रस भर देना चाहते दहै] (लेय
जाती हैं। )
साधना--रामू ने दवा लाने में देर कर दी । उसी की प्रतीक्षा
करती रही | (दवा देती है) कैसा जी है ९
मंदाकिनी (छुप रहकर)--लोग यह व्यर्थ कहते हैं कि तिमिर में
आनंद नहीं होता | तिमिर का फेलाव ही उसका सुख है ।
( चित्र देखतो है ) चित्र भी तो जीवन का संकेत देता है,
साधना !
'साधना (पास जाकर) --कया कह रही हो, कुछ समझ में नहीं
आता | डाक्टर ने कहला सेजा है कि कल से इलेक्शन
लगा देंगे ।
मंदाकिनी ( चित्र की थोर देखती हुई )--कौन कह सकता है,
चित्र का जीवन एकांकी नाटक की तरह अपने ध्येय के
प्रति तीत्र नहीं होता, साधना !
( फिर रिकर्डा' बज उठता है। )
मंदाकिनी--नहीं, नहीं, यह मेरे हृदय का गीत नहीं है। मेरे
श्वासों की -धूम-शिखा है। सें नहीं सुनना चाहती, नहीं
सुनना चाहती । (वकिबे से कान बन्द कर लेती है। रिका
बजना बन्द हो जाता दै। वह उठकर बेठ जाती है और सामने
की तस्वीर देखने लगती है.। )
साधना--जीजी, कैसा जी है ? यह तुम्हारा पत्र है। भीतर
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