धूमशिखा | Dhoomshikha

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Dhoomshikha by उदयशंकर भट्ट - Udayshankar Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४ ) चाहती हूँ री। चह गीत बन्द ही नहीं होता । कान फाड़े दे रहा है । न-जाने कैसे मूर्ख हैं. लोग। जबरदस्ती लोगों के कानों में बिना चाहें रस भर देना चाहते दहै] (लेय जाती हैं। ) साधना--रामू ने दवा लाने में देर कर दी । उसी की प्रतीक्षा करती रही | (दवा देती है) कैसा जी है ९ मंदाकिनी (छुप रहकर)--लोग यह व्यर्थ कहते हैं कि तिमिर में आनंद नहीं होता | तिमिर का फेलाव ही उसका सुख है । ( चित्र देखतो है ) चित्र भी तो जीवन का संकेत देता है, साधना ! 'साधना (पास जाकर) --कया कह रही हो, कुछ समझ में नहीं आता | डाक्टर ने कहला सेजा है कि कल से इलेक्शन लगा देंगे । मंदाकिनी ( चित्र की थोर देखती हुई )--कौन कह सकता है, चित्र का जीवन एकांकी नाटक की तरह अपने ध्येय के प्रति तीत्र नहीं होता, साधना ! ( फिर रिकर्डा' बज उठता है। ) मंदाकिनी--नहीं, नहीं, यह मेरे हृदय का गीत नहीं है। मेरे श्वासों की -धूम-शिखा है। सें नहीं सुनना चाहती, नहीं सुनना चाहती । (वकिबे से कान बन्द कर लेती है। रिका बजना बन्द हो जाता दै। वह उठकर बेठ जाती है और सामने की तस्वीर देखने लगती है.। ) साधना--जीजी, कैसा जी है ? यह तुम्हारा पत्र है। भीतर




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