तुलसीदास : एक अध्ययन | Tulsidas : Ek Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० तुलसीदास : एक अध्ययन संत्रंध में कोई भ्रान्ति नहीं होगी ओर शायद ही उसे आगामी पीढ़ियों क्रो थोके में डालने की इच्छा हो | इसी सत्य का सहारा लेकर हम गुसाई' तुलसीदास के जीवनबृत्त की खोज करते हैं। हमारे आधार उनके मंथ होंगे । इस अंतराक्ष्य की दृष्टि से कवितावल्ती, बाहुक और विनय पत्रिका मुख्य के बाद मानस, दोहावली, रामाज्ञा प्रश्न, पावती मंगल ओर वरव रामायण । अन्य गअन्थों से जीवनवृत्त बनाने में कोई सहायता नहीं मिलती । तुलसी के जन्मकाल के संबंध में उनके किसी भी पंथ में उल्लेख नहीं मिलता | माता-पिता के नाम का भी कहीं उल्लेख नहीं है| उनका नाम तुलसी था ओर कदाचित्‌ वेराग्य धारण करने पर उन्होंने इसका तुलसीदास कर लिया-- नाम तुलसी भोड़े भाग सो कहायो दास कियो अंगीकार ऐसे बड़े दगाबाज़ को । ( कविताबली उत्तर० १३ ) अपने जीवन की संध्या में वे पूर्णतः रामाश्रित हो गये थे और अपने को 'रामबोला' कहने लगे थे, यह विनय पत्निका से स्पष्ट है। जाति की दृष्टि से तुलसीदास व्राह्मण थे, यह निर्विवादं है परन्तु उनका सम्बन्ध आहाणों की किस उपज्ञाति से था, यह निश्चयात्मक रूप से नहीं कहा जा सकता । श्री सुधाकर द्विवेदी और डाक्टर प्रियसन उन्हें सरयपारीण নাজ শবান ইং मिश्रव॑ थ उन्हें छान्यकुब्ज ठहराते हैं; वाता न उन्हें सनाह्य लिखा है ओर इसकी पुष्टि कुछ लोग विनय पत्रिका की उस पंक्ति से करते हैँ जिसमें उन्हें सकुल ( शुक्ल ) कहा गया है जो सनाक्ष्यों का एक गोत्र है--- दिया स॒ुकुल जनम शरीर मुन्दर हेतु जो फल्न चारि को ( विनय० १३५ )




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