दो शब्द | Do Shabd

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ १५) किये हुए सुन्दरता ओर शील के निधान सूये छल के भूषण श्री राम जी को देखकर सखियां अपनी सुधवुध भूल गई। प्रभु राम जी सतानद्‌ के चरणो की बन्दना कर के शुरु जी के पास जाकर जेठे | तब मुनि ने कहा । हे ततत चलो राजा जनक ने बुलाया है । | चौपाई ३ लाइन । शब्दार्थ --ईश -- परम त्मा ।काहिघो = किसको। भाजन पात्र, कृपा | जारर-- जिसपर | सखशाला <« यज्ञ भूमि । क श्रभ-- वहां जाकर सीताजी क्रा स्वयम्बर देखो । ईश्वर किसको बड़ाई देता है लक्ष्मण जी ने कह्ा--हे नाथ ! श्रापक्री जिस पर रूपा होगी वही यश का पात्र होगा। फिर कृपालु रामजी गुनिया के दल के साथ घनुप यज्ञ शाला देखने को चले। . दोद्दा २ लाइन। शब्दार्थ--कु जर>हाथी | सणित ` मरिय | कलित >- शी भां । उरन्‍्ह ++ हृदय ।/वूत्र भ >> जे ल। ठवनि ग्वाल ! बलनिधि = वलवान হাক হাজী) श्र्भ--उनके गले में सुन्दर राज सुक्ता के कठे ओर हृदय में तुलसी की मालाएं शोभा दे रही थीं। उनके गेलो के समान उठे हुए कथे, सिह की सी चाल, एवं शक्ति शाली लम्बी भुजाएं थी। | (पठ २१) चोपाई ५ लादेन । यब्दार्भ--तूणीर = तरकस कर = हाथ । शरन्=्वाण | वाम =बाये | वर =श्र्ठ | उपवीत = জলজ | मंजु = सुन्दर ! वनि =प्रथ्वी | अर्थ--कमर से पीत्तोम्बर पहिने और तरकस बांधे हाथों मे 'बाण ओर सुम्द्र वाये कन्पे पर धच्ुप एवं पीले जनेडः शीभा-




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