ऐट होम इन इण्डिया | At Home In India

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At Home In India by जी एल मीरचदानी - g l meerachdani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१.७ की सारी जाति-व्यवस्था तेज़ी से ढीली पड रही है। वास्तव में जात-पाँत की व्यवस्था फानूनन समाप्त हो चुकी है। फिर भी जहाँ तक नौकरो का सम्बन्ध है, हर नौकर सिर्फ अपना विशेष प्रकार का काम ही करेगा, घोवी खाना नहीं पकायेगा, रसोइया कपडे नही घोयेगा, वटलर वगीचे का काम नही करेगा, माली खाना परोसने के काम में हाथ ही नही लगायेगा, इत्यादि। और यदि हम, जिनका आदर किया जाता था और जिनके दर्ज को ऊँचा समझा जाता था, हस्तक्षेप करते ओर कुछ काम खुद ही करते तो नौकर बुरा मानते । वे या तो यह मानते कि, हम उनके काम की आलोचना कर रहे हैं या यह कि हम अपने को नीचा गिरा रहे हैं। जव हम व्यक्तिगत रूप से नोकरो को ज़्यादा अच्छी तरह जान गये, तब हमने उन्हे जपने अमरीकी रहन-सहन के ढग को समाया कि किस प्रकार अमरीका में लोग अपना अधिकाश या सारा घरेलू काम खुद ही करते हैं, किस प्रकार उन्होने अपने घरेलू कामको आसान बनाने के लिए घरेलू काम की मजीने बनायी हैं। इसके बाद वे अच्छी तरह समझ गये कि हम «क्यो अपना इतना सारा काम खुद करने पर जोर देते हैं और आगे चल कर उन्होने इसको बुरा मानना छोड दिया। उनमे से कुछ के लिए दूसरे घरो में हमने अच्छी नीकरियाँ खोज दी | उनमें यह समभ धीरे-धीरे आयी । कुछ नौकर हमारे अमरीकी तरीकों को वास्तविक रूप में समझे वर्गर केवल हमारी वातो कै अभ्यस्त ही हुए 1 एक दिन मे अपने मकान के पिछवाडे वाले माँगन में, उस तरफ, कुछ नौकरो के बच्चो के साथ खेल रही थी, जहाँ वे अपने माता-पिता के साथ रहते थे । जिस गेंद से हम खेल रहे थे वह उस नाली में जा गिरी, जो बाहर गली की मोरी तक गयी थी । उन छोटे बच्चो मे से एक, जिसका नाम लीला था-गेंद को पकडने के लिए मेरे साथ आ गयी । तब मैंने ध्याव दिया, वैसे में पहले भी कई वार देख चुकी थी, कि वह मोरी कितनी गन्दी और कीचड से मरी हुई थी। है मेंने लीला के सामने सुझाव रखा, “अगर हम इसे साफ करके उम्दा बना




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