अढार दूषण निवारक | Atharh Dushan Nivarak

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Atharh Dushan Nivarak by अनूपचंद मलुकचंद - Anoopchand Malukchand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३१) शास्त्र जोह गुरुनो समागम करी बुद्ि प्राप्त करवानो उद्यम क- रीए ठीए, मटि बनी कसर सिर थाय ठे केटलीएक बाबतों नथी समजाती ते पण बुदनी कसर ठे ते कसर नीक्ली जके एटले यथार्थ समजाशे संसारी काममा बुहि प्रगट थवी सदेल ठ अने आत्मतत्व लंलखवानी बुद्दि आववी कठ्ण छे, मांदे वी* तरागना वचनमा शाका करवी नडि निकंखा ते कुमतिनी वाठा, कुमति ते कुबुछि आत्माने विषे अनादिनी उठ, तेना प्रज्ञावे वि पयादिकना श्रन्निक्षाप थ्या करे ठे; जे जे छ खना कारण ठे ते सुखनां कारण ज्ञासे छे; आत्मानी स्वरिद्दि सामी दृष्टिज नथी वली एवी कुबुद्धि वाला ठेव गुरून) वाग धाय ठ ते कंखा दूषण कद्‌)ए ते जेदने ठ्ुठे, तेने जरा पण कुमतिनी वांग घ्रती नथी निष्वितिगि्ठा ते धर्मना फलनेो संशय, ते হীহানগগী হাহল ते निधितिगिछा आचार जाणवो ए आचार त्ाज्ञातराय तूटवाश्ी धाय छे खरी श्आात्मिक वस्तुनी तथा आत्मिक वस्तु प्रगट थवा- ना कारणोनी चोकस खान्नी घाय ठे तेभ्री फलनो हांसय रदेतो नथी श्रमूटद्िते मूढपणं गयु ठे मृढपरे वस्तुने अवस्तु मनि, जेमके उनीयामा वेवीश्रा ढोर कदेवाय ठे. ते ध्रात्मानी वाते करे पण विषय कपायमा मग्न रहे, कोऽपण प्रकरे संसारथी छदास भाय नटि; देवगुरूनी क्ति ने त्रत नियमने विपे प्रवते नहि एदयी जे ददाते मूढ दएीपणुं कदीए, ते न देय जे जे रीति प्रसजीए जे जे श्रपेक्षाए धर्म बताव्यों ठे ते प्रमाणे श्र्ग करे विपय कपाय श्रन्नत जेंटला जेटला ल॑गा थाय ते करे जे न ठले है टालवानी वाढा बनी रदी ठे एवो ले आचार ते श्रमूढ दृष्टि कदीए उबयूद गुण ते साधु साध्वी श्राचक श्राविका प्रमुख घत्तम पुरुषना गुणनी प्रणसा करवी ते. घ्रीरीकरण गुण, ते साधु साध्वी श्रायक श्राविका चतुर्दिव सघरुप उत्तम पुरुष धर्मश्री च-




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