वाल्मीकि और तुलसीः | Valmiki Aur Tulsi

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Valmiki Aur Tulsi by रामप्रकाश अग्रवाल - Ramprakash Agarwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११६ वाल्मीकि भर तुनसी . साहित्यिक मृूल्याकन महत्व है ।* ४ सीता और राम का भी वस्तूत एक ही व्यक्तित्व है। भ पात्रों की एक निश्चित रूपरेखा कवि के मन में है, उसी के श्राधार पर वह्‌ क्था को गूथ रहा है ।' ६. कथा के समान कवि ने पूर्वपरिचय के नाते अ्रधिकाश् पात्रो की स्थिति झौर चरित्र का श्राभास प्रारभ मे ही दे दिया है।* ७ उसकी कथा में उत्तम और प्रधम पात्रो का सम्मिलित समाज है । इस प्रकार श्रादर्श और यथार्थ का मेल स्वयमेव हो गया है । ८, राम का चरित्र सावधानी से समझा जाना चाहिये, उनके दृश्यमान दोप भी मूल रूप मे गुण ही है । ६ राम के चरित्र का विश्लेषण उनका प्रधान लक्ष्य है ।* १० उनके राम एक साथ ही परबत्रह्म, लोकप्रसिद्ध ऐतिहासिक राम (दाशरथी राम), ईश्वर श्रौर विष्णु हैं ।* ११. राम के स्थूल লী सूक्ष्म दोनो स्वरूपो का वणंन उनका श्रभिप्रेत है, दोनो मे प्रज्ञानजन्य भेद प्रतीत होता है परन्तु वास्तव मे एकता है ।* १ सभी पात्रों की वबन्दना राम के नाते को गई ই, অধ হী उनके चरित्र की परिभाषा भी राम से उनके सम्बन्ध के आधार पर ही की गई है, जेसे लक्ष्मण 'जो कि राम की यश-पताका के लिये डडे के समान थे”, भरत जो कि राम को प्रेम करते थे, भौर शत्रुघ्न भरत के अनुगामो थे इत्यादि | दे० मा० (? १६ १८) | २, गिरा-अर॒थ जल-ीचि सम কছ্িঅন শিন্ন ল মিন্ল (१ दो० १८) ४ दे० ऊपर की टिप्पणी १ । इसके श्रतिरिक्त तुलसी ने सारे पात्रों को भ्रवतारवाद से सम्बन्धित किया दे. | लक्ष्मण भी अवतार हैं (१.१७ ७),इनुमान भी अवतार हैं (५.२०.६) रावण भी अवनार है (७६४ ८), दशरथ-कोशल्या मी कश्यय-अद्दिति के अवतार ई (१ १८७.२-४) ओर वानरादि भी देवताश्रों के श्रवतार हैं (१ १८८ ३) । ४ दे० ऊरर का थ्प्पणी ? । इनके अतिरिक कुद्ध अन्य पात्रों का परिचय भी किसी न किसी बहाने दे दिया गया है, जेसे ताड़का का (१ २४) ] ५ सत-श्रपत्‌ बन्दना शरोर 'गुण-रोष मय? विश्व के उल्लेख (१ ६) से यह स्पष्ट ही है । ६ “लघुमति मोरि चरित अवगाद्य” (? ८ ५)। इसके साथ ही कवि ने राम पर यह कटाचछु भी किया है कि जिस अपराध पर उन्होंने बालि का वध किया वही फिर सुग्रीव और विभीषण ने किया, परन्तु राम ने उस पर स्वप्न में भी ध्यान नदीं दिया क्योकि अपने भवततो के ভা वे ज्ञमा कर রি ই ই০-_(২ ৫) | वालि से भी तो उन्होंने कद्दा था “अचल स तनु रलह प्राना (४,१०.२) । पी पृ० ११४ गई डा० ” टिप्पणी का भा यही आशय है । ই বি ভিন বত जा नाव না करन चहउ रपबुति गुन गाह् (१.८ ५),तथा भरद्वाज के अश्न “राम कवन” (१ ४६)और पावती के प्रश्न जो नृप तनय त बरह्म किमि (१ दो० १०८) के उत्तर के स्प से कथा का प्रस्तार | इसफे अतिरिक्त उनकी कविता का उद्दे श्य सी केवल “भजन” अर्थात्‌ राम का गुणकथन ही हे (१ १३)। ८ “घश्रिशेष कारण प्र”, “रामाख्य”, ध्वज? और “हरि (१ मगलाचरण ,६) 8५ ই नहि कु भेदा (१.११६.१) तथा इसी स्थल पर नामतत्व पर वल दिया ना




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