श्री जैन स्वाध्याय माला | Shri Jain Swadhya Mala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जैन स्वाध्यायमाला ३ ০০০ ০ ০ --यक०-९ हि “पाक. ४“... 9 योवर्‌ @ अयत च ०+---गदके०ू--@ प्र॑तिएु बहवे राईसरसत्थवाहपधद्ग्रो मृडं भ वित्ता अगाराश्रौ भणगारिय पन्वदया । णो खल्‌ श्रह्‌ तहा सचाएमि मड भवित्ता श्रगाराभ्रो श्रणगारियं पव्वदृत्तएु । अ्रहं ण देवाणुप्पियाणं अतिए पचाणुव्वयाइं सत्तसिक्खावयाईं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिव- ज्जिस्सामि । भ्रह्मसुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह । तए ण से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वयाईं सत्तसिक्खावयाइईं पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता নঈল হই दुरूहइ, दुरूहित्ता जामेव दिसि पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए । तेणं कालेण तेणं समएणं समणस्स ॒भगवभ्रो महा- तीरस्स जेटढे श्र॑तेवासी इंदभूरईं णामं श्रणगारे जाव एवं वयासी; ~ अहो णं भते ! सुबाहुकूु मारे १ इट्ठे इदट्ुरूवे २ कते कतरूवे ই पिये पियरूवे ४ मणृण्णे मणुण्णख्वे ५ मणामे मणामसरूवे सोमे सुभगे पियदंसणे सुरूवे, बहुजणस्सवि यणं भते । सुबाहुकु मारे इट्ठे इटुरूवे ५ सोमे जाव सुरूवे । साहुजणस्सवि यण भते! सुवाहुकूमारे इट्ठे इद्ुरूवे ५ जाव सुरूवे । सुबा- हुणा भते ! कुमारेण इमा एयारूवा उराला भाणुस्सरिद्धी किण्णा लद्धा, किण्णा पत्ता, किण्णा अभिसमण्णागया ? को वा एस पग्रासी जाव कि णामए वा कि गोत्तए वा कि वा दच्चा किया भोच्चा कि वा समायरित्ता कस्स वा तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि झायरियं धम्मियं सुवयण सोच्चा जेण इमेयारूवा माणुस्सरिद्धी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया । एवं खलू गोयमा | तेणं कलेणं तेणं समएणं इहेव जंवृहीवे




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