अनामिका | Anamika

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Anamika by श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज्योतिमं यि-लता-सी 1 घेरि निज तरु-तन | खिले नव पुष्प जग प्रथम सुगन्ध के अथम वसन्त में गुच्छ-गुच्छ । हर्गों को रेंग गई प्रथम प्रशय-रश्मि,-- चूएं हो विच्छुरित विश्व-ऐश्वये को स्फुरित करती रही बह रज्ञ-भाव भर शिशिर ब्यों पत्र पर कनक-प्रभात के, किरण-सम्पात से । दर्शन-समुत्सुक युवाकु्त पतद्न ज्यों बविचरते मब्जु-मुख ' शुब्ज-सूदु थलि-पुर्ज मुखर-उर मौन वा स्तुति-गीत में दे ।




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