मेवाती का उद्भव और विकास | Mewati Ka Udbhav Aur Vikas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के अन्तर्गत सम्मिलित कर लेने मे भी कोई द्विविधा नहीं होती चाहिए ।” ° उक्त कथन में दो बातें सामने झप्ती हैं। प्रथम तो यह “मध्यवर्तनी बोली है” गौर दूसरे यह राजस्थानी के साथ रवखी जा सकती है । परन्तु पृष्ठ प्रमाणो एवं उदाहरगणों के प्रमाव में यहु मत भी स्पष्ट नहीं जान पडता । 'दविखनी हिन्दी का उद्भव झौर विकास” ?० नामक शोध ग्रथ में मेवाती के अन्यतम प्रभाव को स्वीकार किया गया है। लेकिन विद्वान लेखक के द्वारा यह कही भी स्पष्द करने का प्रयास नही किया गया है कि वह प्रभाव क्सि प्रकार का एवं कैसा रहा है। यत्र-तत्र कुछ शब्द-हूपों के प्रयोग के अतिरिक कोई विशेष सामग्री उपलब्ध नहीं होती । इनके ग्रतिरिक्त 'समितिवाणी” (भरतपुर), बल्यना, (हैदराबाद), 'शोघ- पत्रिका' (उदयपुर), भोक' (नूह), विश्वज्योति (पजाब) 'मझुभारती' (पिलानी), “प्ररावली' (अलवर), तेज प्रताप' (अलवर) सप्त्तिघु (हरियाणा), “राजस्थानी' (कलकत्ता) आदि पत्र-पत्रिकाग्रों से दिखरी सापमग्रो उपलब्ध होती है । परन्तु कोई विचाशेत्त जक भाषा वैज्ञातिक सामग्री प्रकाश में नहीं भ्रा सकी । भेवाती सम्बन्धी प्रध्ययन विश्लेषण पम्बन्धी सामग्री का अभाव ही रहा । (3) कुछ ऐसे मी प्रथ सामने সাম जिनमें मेवाती का विध्तृत, गभीर एव भाषा-वैज्ञातिक ग्रध्ययन अस्तुत किया गया है। इस प्रकार का कार्य करने वालो मे सर्वप्रथम रेव० जी० मैक्लिस्टर महोदय का नाम लिया जा सकता है। उन्होने मनर 1898 में जयपुर नरेश के प्रोत्साहन से “स्पेमीमैन्स प्राफ दी डायल॑व्ट्स स्पोकन इन दी स्टेट भ्राफ जयपुर नामक रचना का प्रकाशन करवाधा । इस पुम्तक में जयपुर राज्य में बोली जाने वालों 15 बोलियो बे! उदाहरण कहानियों के रूप भे सकलित किये गये हैं! इसमे मेवाती बोली (बीघोता की बोली) की सात कहानियों को भी स्थान मिला है। ये कहानियाँ मेवराती के कोटकासिम क्षेत्र से चुनी गई थी। यह कहने में कोई सकोच नहीं कि मेवप्ती सम्बस्धी यह सर्वप्रथम कार्य था ॥ इससे मेदाती का एक सक्षिप्त व्याकरण भी बोली वे उदाहरणो के झ्लाधार पर दिया गया । मोटे मय से इसमें सज्ञा, स्वंताम सावंनामिक-विशेषशा, क्रिया, क्रिया-दिशेषण, उपस्॒र्ग एव परसगों का सक्षिप्त उल्लेख था | बस्तुत॒: मैद्िलिस्टर सडोदय का आग বানী का अध्ययन प्रस्तुत करना नहीं था, वे तो बोलियो का प्रध्ययन करने मे प्रवृत्त हुए थे, मेव तो के प्रध्ययन मे नही । इससे स्पष्ट है कि मेवाती के विशुद्ध प्रध्ययत का अ्माव यहाँ भी बना रहा 1 मेदाती दोली का प्रथम वर्स॑नात्मक अध्ययन सर्वे प्रथम सत्‌ 1907-8 मे डा० प्रियर्सन ने प्रस्तुत किया । १? डा० साहद का *लि. स. इ० भारतीय प्रायं গত




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