संस्कृत - साहित्य - सौरभ - 10 | Sanskrit Saahity Saurabh-10

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सालबविकाग्मिमित्र १३ नये खिले हुए लाल कुरबक के फूलों को उनके पास भेजा था ओर वसन्त उत्सव के बहाने उनके साथ झूला झूलने की इच्छा प्रकट की धी । इसलिए अब प्रमदवन चलना चाहिए । महाराज रानी की बात सुन चुके थे ओर फिर रानीके प्रेम का इस प्रकार एकाएक अनादर करना भी ठीक नहीं था, इसलिए वे दोनों उधर ही चल पड़ । >< ১ >< उन दिनों सचमुच वसन्त आ चुका था । पडो पर कोयले कूक रही थीं,आम के पेड मं बौर निकल आया था । दक्षिणी वायु उसकी सुगन्ध चारों ओर फला रही थी । जिधर देखो उधर फूल জি हुए दिखाई देते थे। कहीं लाल अशोक फूल थे तो कहीं काले, धौले और लाल कुरबकं । कहीं भौरों से लिपटे तिलक की बहार थी । यह वह समय था जब अशोक-व॒क्षों की इच्छा पूरी करने के लिए कुमारी और सोभाग्यवती नारियाँ सज-धज कर जातीं और जिन वक्षों पर फूल न खिलते थे, उनपर अपने पैरों के प्रहार से फूल खिलाकर उनका मनोरथ पूरा करतीं । प्रमदवन में एक सुनहरी अशोक था, जिसका मनोरथ पूरा करनं कं लिए महारानी धारिणी प्रतिदिन जाया करती थीं । किन्तु एकं दिन विदूषक गौतम की कोई हँसी की बात सुनकर वह ऐसे खिलखिलाईं कि झले से




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